क्षत्रियों के क्षात्रबल बड़ाने के वैदिक मंत्र-तू अकेला ही सब शत्रुओं को वश में करने में समर्थ है

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ईश्वरीय वाणी वेद सनातन हिन्दू समाज के सर्वोच्च मान्य धर्मग्रंथ हैं। ईश्वरीय वाणी वेद साक्षात मोक्ष का मार्ग है और वेदों की अवज्ञा अर्थात वेदों से दूर होना व वेदों की बात ना मानना ही सम्पूर्ण कष्ट का कारण है। इन आदेशों का पालन न करने वाला मनुष्य इस जन्म में कष्ट एवं अगले जन्म में मनुष्य से हीन योनी में जन्म लेता है।

वेदों में क्षत्रिय धर्म और क्षात्र तेज के लिए बहुत से मंत्र दिये गए हैं जो क्षत्रियों को पड़ने, सुनने और मनन करने चाहीयेँ। इससे क्षत्रियों का क्षात्रतेज और क्षात्रबल बड़ता और वे रणभूमि में सदा विजयी होते हैं।

अपने इष्ट देव को ध्यान कर प्रतिदिन इन मंत्रों को पड़ने से अपार शक्ति मिलती है और क्षत्रिय सदा विजयी होते हैं।

ऋगवेद 9.13.9

अपघ्ननतो अराव्णः पवमाना स्वर्दृशः।

योनावृतस्य सीदत॥

आततायीयों को नष्ट करते हुए, पवित्रता का प्रचार करते हुए, ज्योति का दर्शन करते हुए तुम सत्य के मंदिर में आसीन होओ।

ऋगवेद 1.37.12

मरुतो यद्व वो बलं जनां अचुच्यवीतन।

गिरीं रचुच्यवीतन॥

हे वीरों तुम्हारे अंदर जो बल है, उससे तुम राक्षस जनों को डिगा दो, पहाड़ों तक को हिला दो अर्थात अपने पुरुषार्थ से विरोधियों को नष्ट भ्रष्ट कर दो।

ऋगवेद 9.90.3

शूरग्रामः सर्ववीरः सहावान् जेता पवस्य सनिता धनानि।

तिग्मायुधः क्षिप्रधन्वा समत्सु अषाड़हः साह्वान् प्रितनासु शत्रून्॥

हे वीर, तुम शूर समूह से युक्त हो। तुम्हारे सभी साथी वीर हैं। तुम शक्तिशाली हो, विजेता हो और धन के दाता हो। तुम तीव्र शस्त्रधारी, तीक्षण धनुर्धर, युद्धों में अजेय, प्रतिपक्षी सेनाओं में शत्रुओं को जीतने वाले हो। तुम हमें पवित्र करो। अर्थात वीर होने के लिए मनुष्य में मनोबल की उत्कृष्टा, अजेयता, वीरत्व की भावना और शक्ति संपन्नता होनी चाहिए, किन्तु इनमें सबसे प्रमुख हैं-अदम्यता एवं आत्मविश्वास।

ऋगवेद 10.166.2

अहमअस्मि स्पत्नहा इन्द्र इवारिष्टो अक्षतः।

अधः सपत्ना मे पदोरिमे सर्वे अभितिष्ठाः॥

मैं शत्रु-नाशक हूँ, इन्द्र के जैसे अविनाशी एवं अक्षत हूँ। इन सभी शत्रुओं को पल भर में पैरों तले रोंद दूँगा।

 

अथर्ववेद 10.6.1

अरातीयोर्भ्रातृव्यस्य दुर्हादों द्विषतः शिरः॥

आपि वृश्चाम्योजसः।

मैं अपने पराक्रम से शत्रुता का आचरण करने वाले शत्रु का एवं दुष्ट-हृदयी द्वेषी वैरी का सिर काट डालूँगा। अर्थात धर्म एवं राष्ट्र के शत्रु को मार डालना शास्त्र सम्मत है।

ऋगवेद 10.84.3

सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मे रुजन् मृणन् प्रमृणन् प्रेहि शत्रून्।

उग्रं ते पाजो नन्वा रूरुध्रे वशी वशं नयस एकज त्वम्॥

हे स्वाभिमान की मूर्ति, गर्वीले शत्रु को परास्त कर दे। शत्रु दल को तोड़ता-फोड़ता, मारता-कुचलता आगे बड़। विश्वास रख, तेरे उग्र बल को कोई नहीं रोक सकता। तू अकेला ही सब शत्रुओं को वश में करने में समर्थ है।

 

यजुर्वेद 1.8

धूरसि धूर्वं धूर्वन्तं, धूर्व तं योsसमान् धूर्वति, तं धूर्वयं वयं धूर्वामः।

देवनामसि वद्मितमं सस्नितमं पप्रितमं जुस्टतमं देवहूतमम्॥

हे मनुष्य, तू मार सकने वाला है तो मार, मारने वालों को। मार उसे जो निरपराधों को मारता है, उसे मार जिसे हम मारने के लिए कटिबद्ध हैं। तू वीर है, देवजनों का अधिष्ठाता है। तू शुद्धतम है, पूर्णतम है, प्रियतम है, देवों का भी पूज्यतम है, अर्थात अपनी शक्तियों को पहचान कर आतताईयों को नष्ट कर दे।

महाभारत का कथन है कि “शत्रु छोटा हो अथवा बड़ा, उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। विष और अग्नि थोड़ी से मात्रा में भी रहने पर घातक और नाशक होते हैं”।

न च शत्रुर वज्ञेयो दुर्बलोsपि बलीयसा।

अल्पोsपि हि दहत्यग्नि निर्षमल्पं हिनस्ति च॥

पंचतंत्र का कथन है कि-

“शत्रु और रोग को प्रारम्भ में ही नष्ट कर दे, अन्यथा बाद में वह पुष्ट व बलशाली को भी मार डालता है”। अतः व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र, भाषा, संस्कृति और धर्म को हानि पंहुचाने वाला शत्रु है। उसके साथ शत्रु जैसा ही व्यवहार करना चाहिए। अतः स्मरण रखो-

जहि शत्रून् अप मृघो नुदस्व

ऋगवेद 3.47.2, यजुर्वेद 7.37

“शत्रुओं को मारो और आक्रामकों को भगा दो”।

उपरोक्त मंत्रो से ये स्पष्ट है कि क्षत्रिय इन सभी मंत्रो का आदेश मानते हुए राष्ट्र की ओर निष्ठा रखते हुए एवं कानून का पालन करते हुए दुष्टों का संहार करे।


(उपरोक्त सभी मंत्र डा० कृष्णवल्लभ पालीवाल द्वारा लिखित पुस्तक वेदों द्वारा सफल जीवन से लिए गए हैं। श्री पालीवाल जी ने वेदों के मंत्र महाऋषि दयानन्द सरस्वती , पंडित श्री पाद दामोदर सातवलेकर, पंडित रामनाथ वेदालंकार एवं डा० कपिल द्विवेदी आदि वेद विद्वानों के वेद भाष्यों से लिए हैं। शीघ्र ही यह पुस्तक यहाँ ऑनलाइन खरीदने के लिए भी उपलब्थ होगी।


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सम्पादन-जितेंद्र खुराना

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Jitender Khurana

जितेंद्र खुराना HinduManifesto.com के संस्थापक हैं। Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. www.HinduManifesto.com does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article.

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