इन वैदिक मंत्रों से आपके परिवार और संगठन में एकता आएगी
अथर्ववेद 3.30.4
जिस एक समान विचार होने से कार्य करने में विरोध नहीं होता है और न कभी परस्पर द्वेष बड़ता है, वह एकता बनाने वाला परम उत्तम ज्ञान तुम सब अपने-अपने घरों में बड़ाओ। अर्थात हमारे संस्कार ऐसे होने चाहिए कि सभी सामान्य विषयों एवं समस्याओं पर हमारे विचार समान हों।
अथर्ववेद 3.30.6
हे मनुष्यों, तुम्हारे जल पीने का स्थान एक हो और तुम्हारे अन्न का भाग भी साथ-साथ हो। मैं तुम सबको एक ही अभियान में साथ-साथ जोड़ता हूँ। तुम सब मिलकर ईश्वर की पुजा करो। जैसे पहिये के आरे केंद्र स्थान में जुड़े होते हैं, वैसे ही तुम अपने समाज में एक-दूसरे के साथ मिलकर रहो। अर्थात समाज के सभी लोग एक साथ मिल कर खाएं, पीयेँ, उपासना करें और मिलकर मैत्री भाव से रहें तथा इस प्रकार अपनी व राष्ट्र की उन्नति करें।
अथर्ववेद 3.30.7
परस्पर सेवा भाव से तुम सबके साथ मिलकर पुरुषार्थ करो। उत्तम ज्ञान प्राप्त करो। समान नेता की आज्ञा में कार्य करने वाले बनो। दृढ़ संकल्प से कार्य में दत्त चित्त हों तथा जिस प्रकार देव अमृत की रक्षा करते हैं इसी प्रकार तुम भी सांय-प्रातः अपने मन के शुभ संकल्पों की रक्षा करो। अर्थात हम आत्मविकास एवं राष्ट्रनिर्माण के लिए एक ध्येय निष्ठ होकर, मिल जुल कर दृड़ संकल्प के साथ कार्य करें।
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