ईश्वरीय वाणी वेदों का आर्यों अर्थात हिंदुओं को आदेश- जो तुझे दास बनाना चाहे उस वैरी के क्रोध को तू चूर-चूर कर दे,-भाग 1
अकर्मा दस्युरभि नो अमन्तुरन्यव्रतो अमानुषः।
त्वं तस्याSमित्रहन् वधर्दासस्य दमभ्य॥
ऋगवेद 10.12.8
हे शत्रुहंता वीर, जो अकर्मण्य, चोर, नास्तिक, पापाचारी, नर-पिशाच हमें सताने आयें, उसके घातक हथियार हम नष्ट कर दें।
वि रक्षो वि मृधो जहि वि वृत्रस्य हनू रूज़।
वि मन्युमिन्द्र वृत्रहन्नमित्र स्याभिदासतः॥
ऋगवेद 10.152.3
हे वीर, राक्षसों का संहार कर, हिंसकों को कुचल डाल, दुष्ट शत्रु की दाड़ें तोड़ दे। जो तुझे दास बनाना चाहे उस वैरी के क्रोध को तू चूर कर दे, अर्थात अपने धर्म, समाज और राष्ट्र के शत्रुओं का संहार कर दो।
उपरोक्त मंत्रो से ये स्पष्ट है कि आर्य अर्थात हिन्दू इन सभी ईश्वरीय मंत्रो का आदेश मानते हुए राष्ट्र की ओर निष्ठा रखते हुए एवं कानून का पालन करते हुए वैदिक जीवन जिए। साथ ही राष्ट्र और समाजहित में राष्ट्र के कानून की सहायता लेकर दुष्टों का संहार करे।
(उपरोक्त सभी मंत्र डा० कृष्णवल्लभ पालीवाल द्वारा लिखित पुस्तक “वेदों द्वारा सफल जीवन” से लिए गए हैं। श्री पालीवाल जी ने वेदों के मंत्र महाऋषि दयानन्द सरस्वती , पंडित श्री पाद दामोदर सातवलेकर, पंडित रामनाथ वेदालंकार एवं डा० कपिल द्विवेदी आदि वेद विद्वानों के वेद भाष्यों से लिए हैं। शीघ्र ही यह पुस्तक यहाँ ऑनलाइन खरीदने के लिए भी उपलब्थ होगी।
सम्पादन-जितेंद्र खुराना
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