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पूज्य शंकराचार्यों और निर्मोही अखाड़े के कारण बन रहा रामजन्मभूमि मंदिर। भाजपा, आरएसएस, वीएचपी और मोदी जी के कारण नहीं! - Hindu Manifesto

पूज्य शंकराचार्यों और निर्मोही अखाड़े के कारण बन रहा रामजन्मभूमि मंदिर। भाजपा, आरएसएस, वीएचपी और मोदी जी के कारण नहीं!

पूज्य शंकराचार्यों और निर्मोही अखाड़े के कारण बन रहा रामजन्मभूमि मंदिर। भाजपा, आरएसएस, वीएचपी और मोदी जी का कोई योगदान नहीं

22 जनवरी 2024 को राम जन्मभूमि मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा होने जा रही है। ये निर्मोही अखाड़े के 500 वर्षों के संघर्ष और पूज्य शंकराचार्यों के अथक प्रयासों का परिणाम है कि आज राम मंदिर बन रहा है। इस संघर्ष में निर्मोही अखाड़े के संतों ने राम मंदिर भूमि को हथियाने वालों से अनेक युद्ध किए और हजारों, संभवतः लाखों संतों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। अनेकों बार तो इन संतों ने अपने चिमटों मात्र से सुसज्जित सेना के विरुद्ध युद्ध किए और श्री राम के चरणों में बलिदान दे दिया।

जब न्यायालय में ये संघर्ष आरंभ हुआ तो सबसे पहले निर्मोही अखाड़ा ही सबसे आगे था और राम जन्मभूमि मंदिर का पूरा इतिहास न्यायालय में रखा। 2010 में भी जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि मंदिर पर निर्णय दिया तो भूमि को तीन भागों में बांट दिया जिसमे एक भाग निर्मोही अखाड़े को दिया गया था। निर्मोही अखाड़े को ये निर्णय स्वीकार नहीं था क्योंकि वे सदा मानते रहे और प्रमाण भी देते रहे कि उक्त स्थान मुख्य राम जन्मभूमि है और वे पूरी भूमि लेकर रहेंगे। इसीलिए वे सुप्रीम कोर्ट में गए।

बुदेलखंड पीठाधीश्वर स्वामी सीताराम दास जी

निर्मोही अखाड़े के बुंदेलखंड पीठाधीश्वर पूज्य स्वामी सीताराम दास जी बताते हैं कि

“२३ मार्च १५२८ बाबर के सेनापति मिरबंकी से युद्ध निर्मोही अखाड़े ने किया।
१८६६ में प्रथम मुक़दमा भी निर्मोही अखाड़े के महंत खेमदास जी ने किया और जीता। उसके बाद उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया। १८८५ में पुनः निर्मोही अखाड़े के संतों ने मुक़दमा किया। १९४९ में ढाँचे के अंदर रामलला को निर्मोही अखाड़े ने विराजमान किया। १९५९ से ९ नवम्बर २०१९ तक बिना किसी से एक रुपये चंदा लिये बिना लगातार प्रमुख पक्षकार के रूप में मुकदमा लड़ा। १९८९ में जब अधिग्रहण हुआ तब निर्मोही अखाड़े से हुआ। उस समय तक पूजा सेवा निर्मोही अखाड़ा के संत ही करते थे। अधिग्रहण करते समय जो समान भगवान की पूजा के पार्षद आदि सहित अधिग्रहित हुए थे। वह सब की लिस्ट भी उपलब्ध है जो की कोर्ट में भी लगाई गई थी। लाखों की संख्या में निर्मोही अखाड़े के साधू वालिदान हुये अतः भगवान की सेवा पूजा का भी प्रथम अधिकार निर्मोही अखाड़े का भी बनता है।”

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में भी निर्मोही अखाड़े ने निर्णायक लड़ाई लड़ी और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से निर्मोही अखाड़े का राम जन्मभूमि केस में उल्लेख किया।

कुछ दिनों पहले राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट में राम मंदिर में पुजारी की नियुक्ति की प्रक्रिया और साक्षात्कार आरंभ किए। किंतु नैतिकता के अनुसार ये दायित्व पूर्ण रूप से निर्मोही अखाड़े को मिलना चाहिए क्योंकि वे ही अधिग्रहण से पहले तक ये सेवा करते आए थे।

पूज्य ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज 

ब्रह्मलीन पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी भी 1989 में निर्मोही अखाड़े के विशेष निवेदन पर आगे आए और कोर्ट केस में पार्टी बने।

रामजन्मभूमि के विषय पर पूज्य ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने हिन्दुओं की अस्मिता एवं धार्मिक अधिकारों को केन्द्र बनाकर ‘रामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के तत्त्वावधान में एक आन्दोलन खड़ा किया। इसी आंदोलन में पूज्य महाराजश्री को गिरफ्तार भी होना पड़ा और चुनार के किले में अस्थायी जेल में 9 दिनों तक निवास करना पड़ा। चित्रकूट, झोंतेश्वर, काशी, अयोध्या और फतेहपुर के विराट साधु-महात्मा सम्मेलनों के द्वारा आपने राममन्दिर निर्माण के विचार को सन्त समाज का व्यापक समर्थन व ठोस आधार प्रदान कराया। अन्ततः श्रृंगेरी में चतुष्पीठ सम्मेलन के द्वारा आपने इस चिन्तन को संकल्प के रूप में गठित कर सनातन धर्म के व्यापक समर्थन की आधार भूमि खड़ी कर दी।

महाराजश्री का प्रारम्भ से ही मानना था कि राम जन्मभूमि के मुद्दे को आस्था से हटाकर राजनीतिक मुद्दा न बनाया जाए। इसलिए आपने चारों शंकराचार्यों सहित अन्य पूज्य सन्तों को लेकर राम जन्मभूमि रामालय न्यास का गठन किया जो राजनीति से दूर हटकर राम मन्दिर निर्माण हेतु तत्पर रहा। आपने 30 नवम्बर 2006 को अयोध्या में आपने अपने लाखों अनुयायियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि की परिक्रमा की। आज भी अयोध्या के लोग उस यात्रा का स्मरण करते हैं और कहते हैं कि अयोध्या में इतने लोग आए और शान्ति बनी रही हो ऐसा यह एकमात्र अवसर है।

2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी अपने निर्णय में ब्रह्मलीन शंकराचार्य जी के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का अपने निर्णय में विशेष उल्लेख किया कि धार्मिक एक्सपर्ट के रूप में उन्होंने प्रमाण दिए। इसी से पता चलता है कि ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के आदेश पर उनके प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी राम जन्मभूमि मंदिर बनवाने में अग्रणी रहे।

ये पृष्ठ माननीय इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के निर्णय के हैं जिसमे माननीय न्यायधीशों ने ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के कृपापात्र ने पूज्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का विशेष उल्लेख किया है

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने राम मंदिर केस के लिए अखिल भारतीय श्रीरामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति बनायी थी जिसका कहना था कि अयोध्या में कोई मस्जिद नही थी इसलिए पूरा राम मंदिर हिन्दुओं को मिलना चाहिए और मुसलमान अपना दावा छोड़ दे।

शंकराचार्य जी के पूज्य शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज शंकराचार्य जी के ओर से हाई कोर्ट में व्यक्तिगत एक महीने लगातार गवाही दिए हैं और स्वामी जी ने ही सिद्ध किया था कि अयोध्य्या की वो भूमि जिसपे विवाद है वो रामजन्म भूमि ही है।

शंकराचार्य जी के वकील को हाइकोर्ट ने सबसे ज्यादा सुना और 90 दिनों में अकेले 28 दिन तो शंकराचार्य जी के वकील पण्डित पी एन मिश्रा जी ने बहस की।

इस केस में उनके वकील श्री पी एन मिश्रा बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में अंतिम बहस में सबसे अधिक समय पूज्य ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के पक्ष की ओर से उन्हें ही मिला और उन्होंने सबसे अधिक प्रमाण देकर सशक्त बहस करी।

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य 40 दिन के बहस में भी शंकराचार्य जी के वकील ने सबसे ज्यादा 9 दिन बहस की है। इससे यह सिद्ध होता है कि शंकराचार्य जी ने राम मंदिर के लिए सबसे अधिक कार्य किया।

पूज्य शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी 

इसके साथ ही पूज्य पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का भी सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर पर निर्णय लाने में प्रमुख योगदान है।

पूज्य संतों के अतिरिक्त एक संगठन के रूप में हिंदू महासभा का भी इस पुनीत कार्य में योगदान रहा जिसके प्रतिनिधि सुप्रीम कोर्ट और मध्यस्थता चर्चाओं में पंडित प्रमोद जोशी थे।

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी पूज्य शंकराचार्यों और निर्मोही अखाड़े के साथ अंतिम समझौते में राम जन्मभूमि स्थान छोड़ने का निर्णय किया।

किंतु सोशल मीडिया पर और कई कार्यक्रमों में भाजपा के कई समर्थक आज मोदी जी को अकारण इस बात का श्रेय दे रहे हैं कि उनके कारण मंदिर बन रहा है जबकि उनका कोई योगदान नहीं है। आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद भी इस केस में पार्टी तक नही थे। वीएचपी ने इसके लिए एक आंदोलन अवश्य किया किंतु वह एक राजनैतिक आंदोलन था और परिणाम नहीं ला सका क्यूंकि अंत में निर्णय माननीय सुप्रीम कोर्ट से ही आया।

भाजपा और मोदी जी को राम मंदिर का श्रेय तो तब मिलता जब लोकसभा द्वारा कानून बनाकर राम मंदिर का निर्माण होता। किंतु ऐसा नहीं हुआ। ध्यान रहे कि इस विषय पर आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने 2018 में मोदी सरकार को कानून बनाने की मांग करी थी जो कि मानी ही नहीं गई। उल्लेखनीय है कि मोहन भागवत जी ने भगवान राम को गौरव पुरुष बताकर उनका स्मारक होना चाहिए, ऐसा कहा था। जबकि हिंदू धर्म के अनुसार भगवान राम का मंदिर होना चाहिए, स्मारक नहीं।

अंततः राम मंदिर पर हो रही सारी राजनीति और देश में संभावित तनाव को दूर करने के लिए अक्टूबर 2019 में सभी पार्टियों ने समझौता किया और राम जन्मभूमि मंदिर रामलला को रामजी की ही इच्छा से वापिस मिला। सुन्नी वक्फ बोर्ड की अंतिम चर्चा भी मुख्यत: पूज्य शंकराचार्यों, निर्मोही अखाड़े और केस में अन्य पार्टियों से ही हुई, जिसमे भाजपा, आरएसएस आदि का कोई संबंध नहीं था और अंततः इस विषय पर विवाद और संभावित राजनीति का अंत करते हुए कुछ शर्तों के साथ सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपना दावा वापिस ले लिया।

आज पूज्य शंकराचार्यों और निर्मोही अखाड़े के कारण श्रीराम जन्मभूमि मंदिर हमारे सामने बन रहा है।

Jitender Khurana

जितेंद्र खुराना HinduManifesto.com के संस्थापक हैं। Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. www.HinduManifesto.com does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article.

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