ईश्वरीय वाणी वेदों का आदेश-मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक को बलिदान करने को तैयार रहें।, भाग 1

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ईश्वरीय वाणी वेद सनातन हिन्दू धर्म के सर्वोच्च मान्य धर्मग्रंथ हैं एवं ईश्वर ने वेदों में ही आर्यों अर्थात हिंदुओं को जीवन जीने की पद्धति एवं सिद्धान्त दिये हैं।

पड़िए, मन मस्तिष्क में धारण करिये और अपने सभी मित्रों के मानसिक उत्थान के लिए भी उन्हे भेजें।

भारतीडे सरस्वति या वः सर्वा उपब्रुवे।

ता नश्चोदयत श्रिये॥

ऋगवेद 1.188.8

मैं मातृभूमि, मातृभाषा और मातृसंस्कृति इन तीनों देवियों की आराधना करता हूँ। वे सब हमें ऐश्वर्य की ओर प्रेरित करें। अर्थात हम इन तीनों की रक्षा और उन्नति का सब प्रकार से प्रयास करें।

इडा सरस्वती मही तिस्त्रो देवीर्मयो भुवः।

ऋगवेद 5.5.8

मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों देवियाँ हमें कल्याणकारी हों। अर्थात हम इन इन तीनों की उन्नति करें। ये तीनों ही किसी राष्ट्र की पहचान हैं।

सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञ पृथिवीं धारयन्ति।

सा नो भूतस्य भवयस्य पत्न्युरु लोकं पृथिवी नः कृणोतु॥

अथर्ववेद 12.1.1

सात महाशक्तियाँ जो राष्ट्र को धारण करती हैं वे हैं: राष्ट्रवासियों में सत्यता, दृड़ अनुशासन, तेजस्विता, संकल्प शक्ति एवं कर्तव्य परायणता, तपस्वी वृत्ति, ज्ञान-विज्ञान की विद्वत्ता और कल्याण भावना से प्रेरित परोपकारमयी वृत्ति। हमारे भूतकाल और भविष्य काल की रक्षा करने वाली मातृभूमि हमारे लिए विस्तृत प्रकाश और स्थान दे। अर्थात राष्ट्र रक्षा के लिए हम उपरोक्त सात गुणों को अपने में विकसित करें और राष्ट्र का विस्तार करें।

Jitender Khurana

जितेंद्र खुराना HinduManifesto.com के संस्थापक हैं। Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. www.HinduManifesto.com does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article.

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