कश्मीर पर ज्वलंत कविता- ‘ काँपती-सी हवा है ‘-सुश्री कुसुम वीर

विज्ञापन
 Visit India’s most ethical Real Estate Portal www.Swarnbhoomi.com

‘ काँपती-सी हवा है ‘

जल रहा कश्मीर है
वैमनस्य पलता है जहाँ
अलगाववादी घोलते हैं
ज़हर हर दिल में यहाँ

ना”पाक़” दुश्मन साथ मिल
आतंक को शह दे रहा
काट ले “जवानों” के सिर
यह जाए न बिलकुल सहा

मानव – मानव को मारता
जिहाद की ये रार है
सम्पत्ति ही सब-कुछ जहाँ
रिश्ते तो तार-तार हैं

भ्रष्ट नेता और अफ़सर
घूमते कई हैं यहाँ
पहनें चोला राष्ट्रवाद का
धोख़ा देते हैं तहाँ

आस्था पर विभक्त मानव
श्रेष्ठ कौन ? न जानता
सबको बराबर अधिकार मिले
हर कोई है यह चाहता

काँपती सी हवा है अब

अविश्वास नीर बहता यहाँ पर

क्या कोई भी न ​जानता,

कि  दोष किसको दें कहाँ

—————————— ——–

-सुश्री कुसुम वीर
(सुश्री कुसुम वीर जी रिटायर्ड कर्नल श्री अजय वीर जी धर्मपत्नी हैं और राष्ट्र एवं समाज जागरण पर कवितायें लिखती हैं।) 

Share

Compare