ईश्वरीय वाणी वेदों का आदेश-सदा स्वराज्य में रहो, कभी भी पराधीन न रहो
अथर्ववेद 5.6.10
जो पापी हमें आँख, मन, चित्त और विचारों से दास बनाना चाहता हो, हे प्रभु, उनको अस्त्र-शस्त्र से निरस्त कर दो। अर्थात हमें इतनी शक्ति दो जिससे हम उन पराधीन करने वालों को नष्ट कर दें। हमारा मनोबल इतना ऊंचा रहे कि शत्रु हमें कभी पराधीन न कर सके। साथ ही हमारी शिक्षा, दीक्षा और संस्कार ऐसे हों कि शत्रु के विचारों से भी प्रभावित न होवें। हम अपने धर्म व संस्कृति पर अटल रहें।
ऋगवेद 1.80.3
हे वीर, आगे बड़, शत्रु पर वार कर, उसे परास्त कर दे। तेरे शस्त्र को कोई नहीं रोक सकता। तुझमें शत्रु को झुका देने वाला बल विद्यमान है। आततायी को मार दे। तेरी जिन प्रजाओं को शत्रु ने पकड़ रखा है उन्हे जीत ले और स्वराज्य का आराधक बन। अर्थात हे मनुष्य, तुझमें असीम शक्ति है। इस आत्मविश्वास के साथ संघर्ष कर, विजय प्राप्त कर और अपने देश में स्वराज्य को सुरक्षित रख।
ऋगवेद 1.80.14
हे बिजली के जैसे गरजने वाले वीर, तेरे गर्जन को सुनकर स्थावर संगम कांप उठेंगे। तेरे शौर्य को देखकर सूर्य तक भय से थर्रा उठेगा। तू सच्चा वीर है। स्वराज्य का आराधक बन अर्थात वैदिक राज्य के लिए संघर्ष कर।
ऋगवेद 10.134.2
हे वीर मनुष्य, तू दुखद रूप से मार काट करने वाले राक्षस के बल को नीचा दिखा दे। उसे पैरों से रौंद दे जो हम पर शासन जमाना चाहता हो। याद रख, तुझे देवी तुल्य माता ने जन्म दिया है। तुझे श्रेष्ठ माता ने जन्म दिया है। अर्थात जो हम पर शासन करने की योजना बनाए उसे नष्ट कर देना माँ के दूध के लाज रखना है।
ऋगवेद 10.38.5
हे बाँके वीर, मैंने तो सुना है कि तू स्वयं अपने बंधनो को काट फेंकने वाला है, कभी पराजित न होने वाला है, सफलता का प्रतीक है। छुड़ा ले अपने आपको घातक के पाश से और स्वछंद होकर आ जा। क्या तुझ जैसा वीर शत्रु पाश में बद्ध रह सकता है? अर्थात कभी नहीं। क्योंकि पुरुषार्थी वीर कभी पराधीन व हताश नहीं होते हैं।
(उपरोक्त सभी मंत्र डा० कृष्णवल्लभ पालीवाल द्वारा लिखित पुस्तक “वेदों द्वारा सफल जीवन” से लिए गए हैं। श्री पालीवाल जी ने वेदों के मंत्र महाऋषि दयानन्द सरस्वती , पंडित श्री पाद दामोदर सातवलेकर, पंडित रामनाथ वेदालंकार एवं डा० कपिल द्विवेदी आदि वेद विद्वानों के वेद भाष्यों से लिए हैं। शीघ्र ही यह पुस्तक यहाँ ऑनलाइन खरीदने के लिए भी उपलब्थ होगी।