ईश्वरीय वाणी वेदों का आदेश-सदा स्वराज्य में रहो, कभी भी पराधीन न रहो
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सम्पादन-जितेंद्र खुराना
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सनातन वैदिक धर्म के 28वें वेद व्यास भगवान महाऋषि श्रीकृष्ण द्वैपायन जी ने संकलित कर वेदों का वर्तमान स्वरूप हमें दिया। 28वें वेद व्यास भगवान महाऋषि श्रीकृष्ण द्वैपायन भगवान विष्णु के 21वें अवतार हैं।
ईश्वरीय वाणी वेद सनातन हिन्दू समाज के सर्वोच्च मान्य धर्मग्रंथ हैं। ईश्वरीय वाणी वेद साक्षात मोक्ष का मार्ग है और वेदों की अवज्ञा अर्थात वेदों से दूर होना व वेदों की बात ना मानना ही सम्पूर्ण कष्ट का कारण है। इन आदेशों का पालन न करने वाला मनुष्य इस जन्म में कष्ट एवं अगले जन्म में मनुष्य से हीन योनी में जन्म लेता है।
वैदिक मंत्रों को मन मस्तिष्क में धारण करिये और वैदिक जीवन जियेँ।
ऋग्वेद 10.152.4
हे तेजस्वी पुरुष, तू हमारे शत्रुओं को नष्ट कर दे। जो हमें पराधीन बनाना चाहता हो उन सब आक्रमणकारियों को तू नीचा दिखा दे। उसे घोर घने अंधकार में ले जाओ अर्थात उसे नष्ट कर दे। अर्थात प्रत्येक मनुष्य को अपनी व्यक्तिगत और राष्ट्रिय स्वाधीनता की मिलकर रक्षा का पूरा प्रयास करना चाहिए।