हिंदुओं को सेकुलरिस्म की गलत परिभाषा सिखाई गयी है, जाने सही परिभाषा-जितेंद्र खुराना

2 नवम्बर 1976 को संविधान के 42वें संशोधन के अंतर्गत भारत एक सेकुलर अर्थात पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित हो गया था। और तभी से स्पष्ट रूप से सेकुलरिस्म के नाम पर राजनीति आरंभ हो गई थी। राजनैतिक दलों के नेताओं ने अपने हिसाब से जनता को लुभाने के लिए सेकुलरिस्म के अर्थ समझाये किन्तु वह सब उनके व्यवहार में नहीं था। इसी कारण से अधिकतर हिंदुओं को सेकुलरिस्म की सही परिभाषा समझ ही नहीं आयी।

अधिकतर हिन्दू समाज आज यही समझता है कि सेकुलरिस्म का अर्थ कि हिंदुओं को सेकुलर अर्थात धर्मनिरपेक्ष बन कर भारत में रहना है, जबकि ऐसा नहीं है। दुर्भाग्य ये है कि वे ये भी नहीं सोचते कि ऐसा कैसे संभव है। कोई व्यक्ति अपने धर्म-पंथ का पालन भी करे और साथ ही पंथनिरपेक्ष भी रहे, ये विरोधाभास है। यही हिंदुओं को सेकुलरिस्म की गलत परिभाषा समझाई गई है।

धर्मनिरपेक्ष का अर्थ होता है किसी भी धर्म का पक्ष न लेना। जब कोई भी व्यक्ति हिन्दू है तो वह हिन्दू धर्म का पक्षधारी तो स्वाभाविक ही हो गया। इस प्रकार वह धर्मनिरपेक्ष अर्थात किसी भी धर्म के पक्ष से अलग कैसे हुआ। प्रत्येक हिन्दू व्यक्ति हिन्दू धर्म का पक्षधारी है क्योंकि यह अधिकार संविधान ने ही हमे दिया है।

सेकुलरिस्म का शुद्ध अर्थ है-सेप्रेशन ऑफ स्टेट एंड रेलीजियन अर्थात राज्य और धर्म में भिन्नता। इसे स्पष्ट शब्दों में ऐसे भी समझा सकते हैं कि रेलीजियन अर्थात धर्म किसी भी प्रकार से राज्य अर्थात देश की सरकार में हस्तक्षेप नहीं करेगा और सरकार सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखेगी और अपनी नीतियाँ बनाएगी। सभी नागरिकों को समान अधिकार होंगे और कोई भी धर्म के आधार पर छोटा बड़ा नहीं होगा।

इसका ये भी अर्थ है कि सभी व्यक्ति गर्व से अपने धर्म का पालन करेंगे। ये समझने वाली बात है कि सभी अपने धर्म का पालन करेंगे। जब सभी अपने अपने धर्म का पालन करेंगे तो धर्मनिरपेक्ष अथवा पंथनिरपेक्ष थोड़े ही होंगे।

साथ ही सभी नागरिक अपने अपने धर्म का पालन तो करेंगे किन्तु अन्य पंथ संप्रदायों का भी सम्मान करेंगे। अन्य पंथ संप्रदायों का भी सम्मान करने से ये अर्थ नहीं है कि वे अन्य अन्य पंथ संप्रदायों का भी पालन करेंगे। पालन तो वे अपने मात्र धर्म अर्थात हिन्दू धर्म का ही करेंगे किन्तु साथ ही अन्य अन्य पंथ संप्रदायों को सम्मान की दृष्टि से देखेंगे।

इसलिए जब मैं यह कहता हूँ कि मुझे गर्व है कि मैं हिन्दू हूँ तो मैं संविधान का पालन ही कर रहा हूँ क्योंकि संविधान ने मुझे ये अधिकार दिये हैं। साथ जब मैं ये कहता हूँ कि मैं धर्मनिरपेक्ष-पंथनिरपेक्ष नहीं हूँ तो भी मैं संविधान का पालन ही कर रहा हूँ क्योंकि पंथनिरपेक्ष को राज्य अर्थात देश की सरकार को होना है, मुझे अथवा किसी व्यक्ति को नहीं।

इसलिए सभी हिन्दू आज से गर्व से कहें कि “मै गर्व से हिन्दू हूँ और मैं पंथनिरपेक्ष-धर्मनिरपेक्ष नहीं हूँ”।

मेरा स्वप्न है कि प्रत्येक हिन्दू तक सेकुलरिस्म कि ये सही परिभाषा पहुंचाई जाए और देश के 100 करोड़ हिन्दू गर्व से कहें कि वे गर्व से हिन्दू हैं और वे पंथनिरपेक्ष-धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं।

ये हिन्दू जागरण का विशेष विषय है। इसलिए मैंने इस विषय पर एक फेस्बूक लाईव वीडियो भी किया था। सभी पाठक इसे भी देखें और जन जन तक पहुंचायेँ।

जितेंद्र खुराना
https://twitter.com/iJKhurana

Jitender Khurana

जितेंद्र खुराना HinduManifesto.com के संस्थापक हैं। Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. www.HinduManifesto.com does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article.

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