मस्जिद में नमाज पढ़ने पर मुसलमानों के दो फिरकों में मारपीट

इंकलाब (9 फरवरी) के अनुसार मस्जिद की मलकीयत पर छिड़े विवाद पर चर्चा करते हुए समाचारपत्र ने लिखा है कि 1907 और इससे पहले इस मस्जिद के इमाम अहले हदीस से संबन्धित होते थे और अब उनकी औलाद की इस मस्जिद की मतवली है। उन्होंने दावा किया कि अब देवबंदियों द्वारा इस मस्जिद पर जो दावा किया जा रहा है वो गलत है। अब्दुल मोनान नामक व्यक्ति ने वक्फ बोर्ड का एक रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र भी पेश किया जिसमें इस मस्जिद के अहले हदीस के कब्जे की पुष्टि की गई है। दूसरी ओर, देवबंदियों के सचिव मोहम्मद शकीर का कहना है कि 125 वर्ष पहले नवाब सरफराज हुसैन खान ने इस मस्जिद को बनवाया था। इस मस्जिद का उल्लेख 1894 के सर्वे में भी दर्ज है। उस वक्त ये मस्जिद हाजी अली जंग के कब्जे में थी। बाद में पक्की मस्जिद बनाई गई। 1920 में मुंशी अब्दुल्ला ने वहां बनी हुई दो मस्जिदें वक्फ कर दी। 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड के प्रमाणपत्र के अनुसार ये मस्जिद देवबंदियों की थी। बताया जाता है कि बाद में मोहम्मद नियाज अहमद ने इस मस्जिद का रजिस्ट्रेशन अहले हदीस के नाम से करवा दिया। इसकी शिकायत वक्फ बोर्ड से की गई थी मगर इस याचिका को खारिज कर दिया गया। इस पर वक्फ ट्रिब्यूलन में एक मुकदमा दायर किया गया था जिस पर फैसला विचाराधीन है।

(स्त्रोत-उर्दू प्रेस की समीक्षा और विश्लेषण, फरवरी -15 2017 अंक, प्रकाशक-भारत नीति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली)


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