ईश्वरीय वाणी वेदों का आर्यों अर्थात हिंदुओं को आदेश-दुष्टों एवं शत्रुओं की छाती चीर दे, सिर तोड़ डाल -भाग 2
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ईश्वरीय वाणी वेद सनातन हिन्दू धर्म के सर्वोच्च मान्य धर्मग्रंथ हैं एवं ईश्वर ने वेदों में ही आर्यों अर्थात हिंदुओं को जीवन जीने की पद्धति एवं सिद्धान्त दिये हैं। ईश्वरीय वाणी वेद साक्षात मोक्ष का मार्ग है और वेदों की अवज्ञा अर्थात वेदों से दूर होना व वेदों की बात ना मानना ही सम्पूर्ण कष्ट का कारण है। इन आदेशों का पालन न करने वाला मनुष्य इस जन्म में कष्ट एवं अगले जन्म में मनुष्य से हीन योनी में जन्म लेता है।
ईश्वरीय वाणी वेदों का पालन कर मनुष्य साक्षात ईश्वर के दर्शन करता है एवं मोक्ष पाता है। इसलिए हिंदुओं को सदा वेदों की शरण में रहना चाहिए एवं वेदों के नियमों एवं सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
पड़िए और मन मस्तिष्क में धारण करिये-
अपघ्नन्त्सोम राक्षसोsभ्यर्थ कनिक्रदत्।
द्युमन्तं शुष्ममुत्तमम्॥
ऋगवेद 9.63.29
हे वीरता के देव, दुष्टों का नाश करता हुआ गर्जता हुआ तू आगे बड़। जाज्वल्यमान उत्तम बल को प्राप्त कर, अर्थात मनुष्य अपने शत्रुओं का सब प्रकार से नाश करे।
अभीहि मन्यो तवसस्तवीयान् तपसा युजा विजहि शत्रून।
अमित्रहा वृत्रहा दस्युहा च विश्वा वसून्या भरा त्वं नः॥
ऋगवेद 10.83.3
हे गर्वीले शूरवीर, आक्रमण कर, तू बलियों में बली है। अपने तप-तेज से शत्रुओं का विध्वंश कर। अमित्रों का संहार कर, पापियों का नाश कर, दस्युओं का संहार कर और पापियों द्वारा जमा की हुई सब संपत्ति हमारे चरणों में लाकर रख दे, अर्थात हे शूरवीर, तू शत्रुओं को सब प्रकार से नष्ट कर दे।
भिन्धि विश्वा अप द्विष परिबाधो जही मृधः।
वसु स्पार्हं तदा भर॥
ऋगवेद 8.45.40, अथर्ववेद 20.43.1
हे वीर मनुष्य, तू समस्त द्वेषियों को छिन्न-भिन्न कर दे, बाधा डालने वाले सब हिंसकों को कुचल दे और वह आलौकिक ऐशवर्य पा जिसकी संसार ईर्ष्या करता है।
ध्नन् मृध्राण्यप द्विषो, दहन् रक्षांसि विश्वहा।
अग्ने तिग्मेन दीदिहि।
ऋग्वेद 8.43.26
हिंसकों को मारता हुआ, द्वेषियों को कुचलता हुआ, राक्षसों को नष्ट करता हुआ हे तेजस्वी वीर, तू अपने प्रखर तेज के साथ सदा चमकता रह।
उद्वृह रक्षः सहमूलमिन्द्र वृश्चा मध्यं प्रत्यग्रं क्षृणीहि।
आ कीवतः सललूकं चकर्थ ब्रह्मद्विषे तपुषिं हेतिमस्य॥
ऋगवेद 3.30.17
हे वीर, दुष्ट राक्षसों को समूल उखाड़ फेंक, इसकी छाती चीर दे, सिर तोड़ डाल। इस चंचल विघ्नकारी को जहां कहीं भी पाए, मार दे। इस ब्रह्म द्वेषी पर तीक्ष्ण धार के वज्र से प्राहर कर।
उपरोक्त वैदिक मंत्रो से ये प्रमाणित है कि आर्यों अर्थात हिन्दुओं का धार्मिक कर्तव्य है कि वे राष्ट्र की ओर निष्ठा रखते हुए एवं कानून का पालन करते हुए समाज के दुष्ट शत्रुओं का संहार करें। इन वैदिक मंत्रों के पालन से ही ईश्वर के दर्शन प्राप्त होते हैं और सभी मनोकामनाएँ भी पूर्ण होती हैं ।
इन वैदिक मंत्रों से अपनी और अपने मित्रों की मानसिकता को वैदिक मानसिकता बनाएँ और सदा विजय व स्वाभिमान को प्राप्त हों।
(उपरोक्त सभी मंत्र डा० कृष्णवल्लभ पालीवाल द्वारा लिखित पुस्तक “वेदों द्वारा सफल जीवन” से लिए गए हैं। श्री पालीवाल जी ने वेदों के मंत्र महाऋषि दयानन्द सरस्वती , पंडित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, पंडित रामनाथ वेदालंकार एवं डा० कपिल द्विवेदी आदि वेद विद्वानों के वेद भाष्यों से लिए हैं। शीघ्र ही यह पुस्तक यहाँ ऑनलाइन खरीदने के लिए भी उपलब्थ होगी।
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ईश्वरीय वाणी वेदों का आर्यों अर्थात हिंदुओं को आदेश-दुष्टों एवं शत्रुओं का नाश करो-भाग 1
http://www.hinduabhiyan.com/sanatan-vedic-dharam/shatruo-ka-nash-karo/
सम्पादन-जितेंद्र खुराना
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