पंथनिरपेक्ष राष्ट्र में उच्चतम न्यायालय में मुस्लिम न्यायाधीश न होने की शिकायत!!!

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सहाफत (7 सितम्बर) ने मुख्य पृष्ठ पर एक समाचार प्रकाशित किया है जिसमें शिकायत की गई है कि वर्तमान समय में उच्चतम न्यायालय में एक भी मुस्लिम न्यायाधीश नहीं है। इस वर्ष उच्चतम न्यायालय से दो मुस्लिम न्यायाधीश सेवानिवृत्त हुए हैं। 11 वर्ष की अवधि में ऐसा पहली बार हुआ है कि न्यायालय में एक भी मुस्लिम न्यायाधीश नहीं है। अंतिम 2012 में उच्चतम् न्यायालय में किसी मुस्लिम न्यायाधीश की नियुक्ति हुई थी। जब न्यायमूर्ति एम.वाई इकबाल और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहीम कलीफुल्ला न्यायाधीश बने थे। गत कुछ समय से उच्चतम् न्यायालय और केन्द्र सरकार के बीच न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर जो विवाद चल रहा है उसके कारण नई नियुक्तियों में काफी बाधा आ रही है। इस समय देश के दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश मुसलमान हैं। इनमें से एक बिहार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी हैं जोकि अगले वर्ष अक्टूबर माह में सेवानिवृत्त होंगे जबकि हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश मंसूर अहमद मीर हैं जोकि अगले वर्ष अप्रैल में सेवानिवृत्त होंगे। उच्चतम् न्यायालय में अधिकतम 31 न्यायाधीश नियुक्त किये जा सकते हैं जबकि इसमें अब तक 28 न्यायाधीश हैं। इस वर्ष के अंत तक 4 न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो जायेंगे। जिनमें गोपाल गौड़ा, न्यायमूर्ति चोकालिंगम नागाप्पन, न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह एवं न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे शामिल हैं।

हिन्दुस्तान एक्सप्रेस (7 सितम्बर) ने अपने अंक में उच्चतम् न्यायालय में मुस्लिम न्यायाधीश न होने की आलोचना की है। समाचारपत्र ने लिखा है कि इससे पहले भी कई अवसर आये हैं जब देश में कोई मुस्लिम न्यायाधीश नहीं था। उदाहरण के रूप में अप्रैल, 2003 से लेकर सितम्बर, 2005 तक उच्चतम् न्यायालय में कोई मुस्लिम न्यायाधीश नहीं था। दिसम्बर 2012 से अप्रैल 2013 तक चार मुस्लिम न्यायाधीश थे। इनमें मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर, आफताब आलम और जस्टिस इकबाल व जस्टिस कलीफुल्ला शामिल थे। समाचारपत्रों के अनुसार उच्चतम् न्यायालय से सेवानिवृत्त हुए 196 जजों में से 17 प्रतिशत मुस्लिम रहे हैं। समाचारपत्र ने कहा है कि एक लोकतांत्रिक देश जिसमें 25 करोड़ मुसलमान हैं उच्चतम् न्यायालय में किसी मुसलमान का न्यायाधीश न होना चिन्ताजनक बात है। इससे देश की छवि खराब होगी।

(स्त्रोत-उर्दू प्रेस की समीक्षा और विश्लेषण, अक्टूबर 1-15 2016 अंक, भारत नीति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली)


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