वैदिक धर्म में वर्णव्यवस्था गुण-कर्म-स्वभाव से है। १::-शूद्रो ब्राह्मणतां एति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम् । क्षत्रियाज्जातं एवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च । ।
अनंत श्री विभूषित श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधिश्वर श्रीमज्जगदगुरु शंकराचार्य भगवान के अमृतवचन :- विद्या- कला- शिक्षा की उपयोगिता:- पूजनीय