श्रीभागवत गीता का कश्मीरी में अनुवाद करने वाले पंडित सर्वानंद कौल की कश्मीरी मुस्लिम जिहादियों ने माथे पर कील ठोक कर हत्या करी थी!
किन्तु उनकी आशाएँ ध्वस्त हो गई और विश्वास टूट गया जब मुस्लिम आतंकवादी 28 अप्रैल 1990 को उनके घर में घुसे और घर के सभी सदस्यों को अपने आभूषण, पैसे, शाल और अन्य मूल्यवान कपडों के साथ एक कमरे में एकट्ठा होने के लिए कहा। उस परिवार ने संकट से आशंकित होकर घर की सभी मूल्यवान वस्तुएं उन हत्यारों के सामने प्रस्तुत कर दी। आतंकवादियों ने पहले तो सभी वस्तुएं इकट्ठी करी और जो आभूषण महिलाओं ने पहन रखे थे वे भी निर्दयता से बलपूर्वक ले लिए। उसके बाद आतंकवादियों ने पंडित सर्वानंद कौल का निजी पुस्तकालय नष्ट किया किन्तु इससे उनकी रक्तरंजित लालसा संतुष्ट नहीं हुई। सारा लूट का सामान (जिसे इस्लाम की जिहाद की भाषा में गनीमत का माल भी कहते हैं-हिन्दू जागरण अभियान के संयोजक जितेंद्र खुराना की टिप्पणी) एक बक्से में भर कर उन्होने पंडित सर्वानंद कौल ‘प्रेमी” जी को ही उसे उठाने का निर्देश दिया और लेकर उनके पीछे घर से कुछ दूर तक चलने को कहा। परिवार के अन्य सदस्यों तड़पते हुए अत्यंत चीख-पुकार करी कि वे चाहें तो सब कुछ ले जाएँ किन्तु पंडित सर्वानंद कौल को छोड़ दें। हत्यारों ने उन्हे विश्वास दिलाया कि पंडित सर्वानंद कौल बिलकुल सुरक्षित और बिना किसी हानि के वापिस लौट आएंगे। जब आतंकवादी नहीं माने तो उनके बेटे वीरेंद्र ने कहा कि वे भी साथ चलेंगे। उन हत्यारों ने कहा-“आपकी इच्छा है तो आप भी साथ चलें”। बस वह अंतिम बार था जब परिवार वालों ने अपने प्यारे बेटे और पिता को देखा था।
2 दिन तक पिता-पुत्र दोनों को भयंकर यातनाएं दी गई। पंडित सर्वानंद कौल अपने माथे पर जिस स्थान पर चन्दन का तिलक लगाते थे उस स्थान पर हत्यारों ने कील ठोक दी। सिगरेट के जले टुकड़ों से उन्हे यातनाएं दी गई। उनके हाथ-पैर तोड़ दिये गए। उनकी आँखें बलपूर्वक बाहर निकाल दी गई। अंततः 30 अप्रैल 1990 को उन्हे एक पेड़ पर लटकाया गया और उन पर गोलियां चलाई गई। उनके बेटे वीरेंद्र को भी इसी प्रकार मार दिया गया।
स्त्रोत-कर्नल तेज टिक्कू जी की पुस्तक-Kashmir-Its Aborigines and Their Exodus
—————–
एक अन्य स्त्रोत (www.ikashmir.net) से ये भी ज्ञात होता है कि पंडित सर्वानंद कौल जी अपने पूजा के स्थान पर इस्लामी ग्रंथ “कुरान” एक दुर्लभ पाण्डुलिपि भी रखते थे और हत्यारों को वह भी मिली थी किन्तु फिर भी उन्होने काफिर (केवल अल्लाह और हज़रत पैगंबर मौहम्मद साहब पर विश्वास ना रखने वाला) , मुशरिक (मूर्तिपूजक और बहुदेवतावादी) पंडित सर्वानंद कौल की हत्या करने में कोई हिचक नहीं दिखाई।
Continued…