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श्रीगुरु नानकदेव जी के समतुल्य शिर्डी साईं बाबा को बैठाना मूर्खता व अज्ञानतापूर्ण-सरदार श्री राजेन्द्र सिंह - Hindu Manifesto

श्रीगुरु नानकदेव जी के समतुल्य शिर्डी साईं बाबा को बैठाना मूर्खता व अज्ञानतापूर्ण-सरदार श्री राजेन्द्र सिंह

लेखक-सरदार श्री राजेन्द्र सिंह

सरदार श्री राजेन्द्र सिंह सिक्ख पंथ के प्रकाण्ड विद्वान हैं और कई दशकों से पुस्तकें व लेख लिख रहे हैं। साथ ही वे वेदों, स्मृतियों और पुराणों के भी प्रकाण्ड विद्वान हैं।


विगत कई दशकों से परमेश्वर और उसकी आभा से आलोकित महानात्माओं के गुणगान के स्थान पर सामान्य मनुष्यों की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा-अर्चना की जाने लगी है। उदाहरण के रूप में बिहार प्रदेश के ग्राम अतरवालिया, ज़िला कैमूर में दिनांक १८ नवम्बर २०१३ को क्रिकेट के “देवता” सचिन तेन्दुलकर की मूर्ति की और कांग्रेसी नेता पी शंकर राव द्वारा महबूब नगर, हैदराबाद में दिनांक ८ जनवरी २०१४ को “देवी” सोनिया गांधी की ९ फ़ुट ऊंची मूर्ति से युक्त मन्दिरों का बनाया जाना लिया जा सकता है।

इसी प्रकार से कुछ वर्षों से शिर्डी साई बाबा की मूर्तियाँ भी मंदिरों में लगने लगी और नई नई मनगड़ंत आरतियाँ भी बनने लगी।

शिर्डी साईं बाबा की जीवनी के लेखक

इसी प्रकार महाराष्ट्र प्रदेश के क़स्बा शिरडी में साईं बाबा का कथित मन्दिर भी बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में बनाया गया था। श्री गोविन्दराव रघुनाथ दाभोलकर ने, जिन्हें हेमाडपन्त भी कहा जाता है, मराठी भाषा में साईं बाबा के जीवन पर “श्री सांई सच्चरित” नामक पुस्तक लिखी थी जो रामचन्द्र आत्माराम तर्खड, श्री साईं-लीला कार्यालय, ५ सेंट मार्टिन्स रोड, बान्द्रे द्वारा प्रकाशित की गई थी।

कालान्तर में श्री शिवराम ठाकुर द्वारा किया हुआ इसका हिन्दी अनुवाद “श्री साईं सच्चरित्र” शीर्षक से श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी ने प्रकाशित किया था। इसी प्रकार विवेक श्री कौशिक विश्वामित्र ने भी एक “श्री साईं सच्चरित्र” लिखा है जिसे पूजा प्रकाशन, सदर बाज़ार, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इसी प्रकाशक ने ४-१/४” × ५-१/४” साइज़ की एक पुस्तिका “श्री साईं कृति” (कुल ४६ पृष्ठ) भी प्रकाशित की है। इसके रचनाकार हैं : सुरेन्द्र सक्सैना और अमित सक्सैना।

साईं के प्रति अन्धभक्तिपूर्ण लेखन

शिरडी के साईं बाबा के प्रति अन्धभक्ति से भरी इस पुस्तिका की भूमिका में सुरेन्द्र सक्सैना की ओर से कहा गया है :

    “मैं बाबा का एक-निष्ठ भक्त १९६७ से हूं। मैंने पूरे १० साल बाबा की भक्ति ज़रूर की। •• करुणानिधान श्री साईं बाबा ने १९७७ में गुरुवार के दिन प्रातः पौने चार बजे मेरे घर में मुझे दर्शन देकर मुझे अपनी लीलाओं का गुणगान करने की आज्ञा प्रदान की। •• मैं एक बार १९९७ में बीमार हुआ। मेरे हृदय की चारों नाड़ियां लगभग बन्द थीं। इस दौरान बाबा मेरे साथ रहे। बाबा के चमत्कार, उनका आशीर्वाद मेरे ऊपर कैसे रहा, ये मैं फिर कभी लिखूंगा।

    जनवरी १९९८ में मेरी बाय-पास सर्जरी हुई जो कि बहुत जटिल होने के बाद सफल रही” (श्री साईं कृति, पृष्ठ ९-१०)।

यहां पर प्रश्न यह उपस्थित होता है कि उपरोक्त पुस्तकों में जब साईं बाबा की “कृपा” से अनेक लोगों के दुःख दूर होने का चमत्कारिक वर्णन किया गया है तो फिर १९६७ से साईं बाबा के प्रति अपनी एक-निष्ठ भक्ति का परिचय देने वाले भक्त-लेखक को जनवरी १९९८ में बाय-पास सर्जरी कराने की नौबत क्यों कर आई !! क्यों नहीं घर में दर्शन देने वाले “करुणानिधान” साईं बाबा ने “चमत्कार” करके अपने भक्त के दुःख-रोग दूर कर दिए !!

“श्री साईं कृति” नामक पुस्तिका के ये अन्धभक्त लेखक इसके पाठ की फलश्रुति का लाभ गिनाते हुए लिखते हैं :

“श्री साईं कृति का पाठ जो भक्त प्रतिदिन श्रद्धा व भक्ति से युक्त होकर करेगा या सुनेगा उसके समस्त दाप-ताप-संताप बाबा हर लेंगे। श्री साईं कृति दैहिक एवं मानसिक पीड़ाओं से मुक्ति दिलाकर चिरानन्द की प्राप्ति कराएगी।”

साईं बाबा को गुरु नानक रूप बताना

इस अन्धभक्ति से भरभूर पुस्तिका के पृष्ठ १७ पर साईं बाबा की स्तुति करते हुए लिखा है :

राम कृष्ण दोनों तुम्हीं हो।
शिव हनुमन्त प्रभु तुम्हीं हो।२१।
दत्तात्रेय अवतार तुम्हीं हो।
पीर पैग़म्बर रहमान तुम्हीं हो।२२।
नानक रूप धरि तुम आये।
सच्चा सौदा कर दिखलाए।२३।
साईं चरणन महूं तीरथ सारे।
विस्मित होय गणु नीर बहाए।२४।

यहां पर लेखक ने जहां साईं बाबा को राम, कृष्ण, शिव, हनुमान् और दत्तात्रेय स्वरूप बताया है वहां गुरु नानकदेव का स्वरूप भी दर्शाया है। इन लेखकों ने अपनी पुस्तिका के पृष्ठ १६ पर छन्द १२ में यह भी लिखा है :

बाबा तुम हो धाम करुणा के।
तुम ही हरत दारुण दुःख जग के।।

अब यहां विचारने की बात यह है कि राम-कृष्ण आदि इन महान् विभूतियों का कथित स्वरूप बने साईं बाबा ने जब अपने भक्त लेखक के दाप-ताप-संताप या दारुण दुःख नहीं हरे और बाय-पास सर्जरी कराने तक की नौबत आ गई तो तुम जैसे सामान्य कोटि के लेखकों की लिखी “श्री साईं कृति” नामक पुस्तिका का पाठ करने वाले के दाप-ताप-संताप को साईं बाबा कैसे हर लेंगे !!!

श्रीगुरु नानकदेव जी के सामने शिर्डी साईं बाबा कहीं नहीं ठहरते 

साईं बाबा की घोर अन्धभक्ति में डूबे इन लेखक ने साईं बाबा जैसे एक सामान्य मनुष्य को श्रीगुरु नानकदेव सदृश महान् राष्ट्रभक्त विभूति के समकक्ष बैठा कर अपनी अज्ञानता का ही परिचय दिया है। इस बात को समझने के लिए दोनों के जीवन से जुड़ी कुछ एक घटनाएं यहां प्रस्तुत की जाती हैं :

१•  सिक्ख पन्थ भारतवर्ष की उस आध्यात्मिक और दार्शनिक चिन्तनधारा से समरस है जो कर्मफल सिद्धान्त की सनातन सत्यता का प्रतिपादन करती है। इस चिन्तनधारा के अनुसार प्रत्येक शुभ या अशुभ कर्म अपने स्वभाव के अनुरूप फल देने वाला है। ब्रह्मवैवर्तपुराण ३/२४/३२-३९ तथा देवीभागवतपुराण ९/४०/७३-७४ में बताया गया है कि किसी भी मनुष्य द्वारा किया गया कोई भी शुभ या अशुभ कर्म सैंकड़ों करोड़ कल्पों (एक कल्प ४ अरब ३२ करोड़ सौरवर्ष का होता है) जितना काल व्यतीत होने पर भी बिना भोगे शान्त नहीं होता।

इस सनातन सत्य को श्रीगुरु नानकदेव ने इन शब्दों में व्यक्त किया है :

चंगिआईआ बुरिआईआ, वाचै धरमु हदूरि।
करमी आपो आपणी, के नेड़ै के दूरि।।
– श्री आदिग्रन्थ, जपु जी, पृष्ठ ८

ददै दोसु न देऊ किसै, दोसु करंमा आपणिआ।
जो मै कीआ सो मै पाइआ, दोसु न दीजै अवर जना।
– श्री आदिग्रन्थ, आसा महला १, पृष्ठ ४३३

फलु तेवेहो पाईऐ, जेवेही कार कमाईऐ।
– श्री आदिग्रन्थ, आसा महला १, पृष्ठ ४६८

जैसा करे सु तैसा पावै। आपि बीजि आपे ही खावे।
– श्री आदिग्रन्थ, धनासरी महला १, पृष्ठ ६६२

कर्मफल सिद्धान्त के सर्वथा विपरीत साईं बाबा अपने-आपको मुक्ति प्रदाता बताते हुए कहते हैं :

“मैं ही समस्त प्राणियों का प्रभु और घट-घट में व्याप्त हूं। मेरे ही उदर में समस्त जड़ व चेतन प्राणी समाये हुए हैं। मैं ही समस्त ब्रह्माण्ड का नियन्त्रण-कर्ता व संचालक हूं। मैं ही उत्पत्ति, स्थिति और संहार-कर्ता हूं। मेरी भक्ति करने वालों को कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। मेरे ध्यान की उपेक्षा करने वाला माया के पाश में फंस जाता है” (श्री साई सच्चरित्र, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १९९९ ईसवी, अध्याय ३, पृष्ठ १६)।

इस कथन के विपरीत साईं बाबा के समकालीन लेखक गोविन्दराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाडपन्त) यह भी बताते हैं :

“श्री साईं बाबा की ईश्वर-चिन्तन और भजन में विशेष अभिरुचि थी। वे सदैव ‘अल्लाह मालिक’ पुकारते तथा भक्तों से कीर्त्तन-सप्ताह करवाते थे। •• वे ‘अल्लाह मालिक’ का सदा जिह्वा से उच्चारण किया करते थे” (श्री साईं सच्चरित्र, पृष्ठ २०, ३१)।

यहां पर प्रश्न यह उपस्थित है कि जब साईं बाबा स्वयं ही उत्पत्ति-स्थिति-संहार के कर्ता-धर्ता थे तो फिर वह “ईश्वर” कौन है जिसके चिन्तन और भजन में उनकी विशेष अभिरुचि थी !! इस प्रकार साईं बाबा ने एक ओर जहां अपने-आपको परमेश्वर बताने का दावा किया है वहां दूसरी ओर अल्लाह को “मालिक” ठहराया है !! अब साईं बाबा के अन्धभक्त बताएं कि इनमें से कौनसी बात सही है !! वस्तुतः साईं बाबा एक सामान्य मनुष्य से अधिक और कुछ नहीं थे।

२•  श्रीगुरु ग्रन्थ साहिब यानी श्री आदिग्रन्थ वैष्णव चिन्तनधारा से समरस होने के कारण प्रत्येक प्रकार के नशे और मांसाहार का निषेध करता है। उदाहरण के रूप में गोसाईं कबीर दास के सलोकों में लिखा है :

  कबीर भांग माछुली सुरा पानि जो जो प्रानी खांहि।
    तीरथ बरत नेम कीए ते सभै रसातलि जांहि।।
– श्री आदिग्रन्थ, सलोक भगत कबीर
जीउ के, सलोक २३३, पृष्ठ १३७७

[ जो-जो प्राणी मछली इत्यादि मांस खाते और भांग-सुरा इत्यादि का सेवन करते हैं, वे चाहे कितने भी तीर्थ-व्रत करें, नियमित जीवन जीयें, निश्चय ही उन सभी को रसातल=नरक में जाना है ]।

श्री आदिग्रन्थ की मांसाहार और नशा सम्बन्धी इस निषेधाज्ञा के विपरीत साईं बाबा मांस और नशा दोनों का सेवन करने के आदी थे। जैसा कि लिखा है :’

“बाबा दिन भर अपने भक्तों से घिरे रहते और रात्रि में जीर्ण-शीर्ण मस्जिद में शयन करते थे। इस समय बाबा के पास कुल सामग्री – चिलम, तम्बाकू, एक टमरेल, एक लम्बी कफ़नी, सिर के चारों ओर लपेटने का कपड़ा और एक सटका था, जिसे वे सदा अपने पास रखते थे” (श्री साईं सच्चरित्र, अध्याय ५, पृष्ठ ३०)।

“यदि किसी ने उनके सामने एक पैसा रक्ख दिया तो वे उसे स्वीकार करके उससे तम्बाकू अथवा तैल आदि ख़रीद लिया करते थे। वे प्रायः बीड़ी या चिलम पिया करते थे” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• १४, पृष्ठ ८९)।

“दक्षिणा में एकत्रित राशि में से बाबा अपने लिए बहुत थोड़ा ख़र्च किया करते थे। जैसे – चिलम पीने की तम्बाकू और धूनी के लिए लकड़ियां मोल लेने के लिए आदि” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• १४, पृष्ठ ९१)।

साईं बाबा के नशा करने की आदत के बाद अब उनके मांस खाने के विषय में लिखा जाता है :

“फ़क़ीरों के साथ वे आमिष और मछली का सेवन भी कर लेते थे। कुत्ते उनके भोजन-पात्र में मुंह डाल कर स्वतन्त्रतापूर्वक खाते थे, परन्तु उन्होंने कभी भी कोई आपत्ति नहीं की” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• ७, पृष्ठ ४२)।

“शामा श्री साईं बाबा के अन्तरंग भक्त हैं। •• फिर बाबा ने पुनः शामा से कहा : •• मैं मस्जिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूं। उस (हाजी सिद्दीक़ फालके) से पूछो कि उसे क्या रुचिकर होगा : बकरे का मांस, नाध या अण्डकोश” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• ११, पृष्ठ ७२-७३)।

“तब बाबा ने शामा से बकरे की बलि के लिए कहा। वे राधाकृष्ण माई के घर जाकर एक चाकू ले आए और उसे बाबा के सामने रक्ख दिया। •• तब बाबा ने काका साहिब से कहा कि मैं स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूंगा। •• जब बकरा वहां लाया जा रहा था, तभी रास्ते में गिर कर मर गया” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• २३, पृष्ठ १३७)।

“मस्जिद के आंगन में ही एक भट्ठी बनाकर उसमें अग्नि प्रज्वलित करके हंडी के ठीक नाप से पानी भर देते थे। हंडी दो प्रकार की थी : एक छोटी और दूसरी बड़ी। एक में सौ और दूसरी में पांच सौ व्यक्तियों का भोजन तैयार हो सकता था। कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांस-मिश्रित चावल (पुलाव) बनाते थे। ••

जब पूर्ण भोजन तैयार हो जाता, तब वे मस्जिद से बर्तन मंगाकर मौलवी से फ़ातिहा पढ़ने को कहते थे। फिर वे म्हालसापति तथा तात्या पाटील के प्रसाद का भाग पृथक् कर शेष भोजन ग़रीब और अनाथ लोगों को खिला कर उन्हें तृप्त करते थे” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• ३८, पृष्ठ २३१-२३२)।

इस प्रकार जो नशा और मांसाहार मनुष्य को नरक  या रसातल की ओर ले जाने वाला है, साईं बाबा न केवल स्वयं उसका सेवन करते थे बल्कि “द्वारका” नाम वाली मस्जिद में आए अपने मुरीदों को हलाल- मांस से मिश्रित और सूरा फ़ातिहा (क़ुरान १/१-७) की आयतों से भावित वह चावल इत्यादि भोजन खिलाकर उनका धर्म भ्रष्ट करने का पाप भी कमाते थे।

ऐसे दोषी मनुष्य साईं बाबा को श्रीगुरु नानकदेव जी सदृश परम सात्त्विक, विशुद्ध शाकाहारी और प्रभु के नाम में लीन रहने वाले महानात्मा के समतुल्य बैठाना घोर अज्ञानता ही है।

साईं बाबा द्वारा पावन तीर्थों का अपमान

गोसाईं कबीर की दृष्टि में नशा और मांसाहार करके रसातल का मार्ग तय करने वाले साईं बाबा तीर्थों का अपमान भी करते रहने के आदी थे। उनके जीवनीकार लिखते हैं :

“शिरडी में बाबा की मस्जिद केवल चारों वर्णों के लिए ही नहीं, अपितु दलित-अस्पृश्य और भागोजी सिंदिया जैसे कोढ़ी आदि सबके लिए खुली थी। अतः शिरडी को ‘द्वारका’ कहना ही सर्वथा उचित है” (श्री साईं चरित्र, अ• ४, पृष्ठ २१)।

“गंगा और यमुना नदी के संगम पर प्रयाग एक प्रसिद्ध पवित्र तीर्थस्थान है। हिन्दुओं की ऐसी भावना है कि वहां स्नानादि करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इसी कारण प्रत्येक पर्व पर सहस्रों भक्तगण वहां जाते हैं और स्नान का लाभ उठाते हैं।

एक बार दासगणू ने भी वहां जाकर स्नान करने का निश्चय किया। इस विचार से वे बाबा से आज्ञा लेने उनके पास गए। बाबा ने कहा कि ‘इतनी दूर व्यर्थ भटकने की क्या आवश्यकता है ! अपना प्रयाग तो यहीं है। मुझ पर विश्वास करो।’

आश्चर्य ! महान् आश्चर्य !! जैसे ही दासगणू ने बाबा के चरणों पर नत हुए तो बाबा के श्री चरणों से गंगा-यमुना की धारा वेग से प्रवाहित होने लगी” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• ४, पृष्ठ २२)।

इस प्रकार एक नशेड़ी और मांसाहारी मस्जिद निवासी बाबा साईं द्वारा मोक्षदायिनी द्वारकापुरी और पापनाशिनी गंगा-यमुना का अपमान किया गया।

ऐसे साईं बाबा के नक़्शे क़दम पर चलते हुए उनके अन्धभक्त लेखक सुरेन्द्र सक्सैना और अमित सक्सैना ने भी अपनी उपरोक्त पुस्तिका श्री साईं कृति के पृष्ठ १७ के छन्द २३-२४ में श्रीगुरु नानकदेव और पावन तीर्थ श्री हरिमन्दिर जी का अपमान करते हुए लिखा है :

नानक रूप धरि तुम आये।
सच्चा सौदा कर दिखलाए।
साईं चरणन महूं तीरथ सारे।

सारे तीर्थों में श्री हरिमन्दिर तीर्थ भी आ जाता है क्योंकि यहां पर श्रीगुरु नानकदेव के प्रसंग में कहा गया है। इस प्रकार इन अज्ञानी लेखकों ने नशा और मांसाहार के आदी साईं बाबा को श्रीगुरु नानकदेव सदृश सर्वथा सात्त्विक, राष्ट्रभक्त और भारतीय संस्कृति के महान् उन्नायक के समकक्ष बैठाने की धृष्टता की है। उनके इस दुष्कर्म की निन्दा अवश्य ही की जानी चाहिए।

सिक्ख संगत से ध्यानाकर्षण निवेदन

श्रीगुरु नानकदेव जी के समतुल्य साईं बाबा को  बैठाने के विषय पर श्री जितेन्द्र खुराना ने जून २०१५ में कई सिक्ख संस्थाओं को ध्यानाकर्षित पत्र लिखे थे। उन्हीं दिनों दैनिक भास्कर, जबलपुर, ३१ मई २०१५, दैनिक नई दुनिया, जबलपुर, ३१ मई २०१५ और दैनिक जागरण, जबलपुर, २ जून २०१५ में भी इस आशय के समाचार प्रकाशित हुए थे जिनमें वहां के स्थानीय सिक्ख समुदाय द्वारा साईं भक्तों के उपरोक्त कृत्य के विरुद्ध शान्तिपूर्वक विरोध प्रकट किया गया था। अब ऐसा ही एक और प्रयास श्री खुराना ने दिनांक १५ सितम्बर २०१६ को लिखे खुले पत्र के माध्यम से किया है।

(वह खुला पत्र यहाँ पड़ें http://www.hinduabhiyan.com/sanatan-vedic-dharam/open-letter-to-sikh-brothers/)

श्रीगुरु नानकदेव जी के प्रति आदर-सत्कार रखने वाले सभी विद्वानों-चिन्तकों से निवेदन है कि वे इस विषय को गम्भीरतापूर्वक संज्ञान में लेते हुए बड़ी विनम्रता और शान्ति से साईं बाबा के भक्तों द्वारा किए जा रहे भ्रामक प्रचार का तर्कसंगत खण्डन करें ताकि भोले-भाले सरलचित्त लोग उनके जाल में न फंस पाएं।


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