आरएसएस के दरबारी संतो का बहिष्कार होना चाहिए – जितेंद्र खुराना

हिंदू समाज को धार्मिक मार्गदर्शन पूज्य संतों से ही मिलता है, किंतु पिछले कुछ दशकों से कई तथाकथित संत कुछ सांसारिक लाभों के लिए सामाजिक संगठन आरएसएस की चापलूसी में दिखाई देते दिख रहे हैं। आरएसएस से प्रभावित राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी की केंद्र और कई राज्यों में सरकार है। इसलिए इन लोभी तथाकथित संतों को लगता है कि भाजपा सरकारों से इन्हे सुरक्षा में सरकारी गनमैन, सुख सुविधाएं, मंत्रियों के साथ फोटो खिंचाने का लाभ मिलता रहेगा। इसलिए ये तथाकथित संत आरएसएस नेताओं के सामने उपस्तिथि लगाते रहते हैं। ऐसे संतों को दरबारी संत कहा जाए अधिक उचित रहेगा। विशुद्ध पूज्य संत सदा सांसारिक लाभों से दूर ही रहते हैं। विशुद्ध संत राजनीति से ऊपर हैं और स्वयं भी एवं समाज को भी ईश्वर की ओर ले जाते हैं। राजनैतिक नेताओं के साथ फोटो पूज्य संतो के लिए तुच्छ मूल्य के बराबर है। किंतु कलयुग के कुछ कालनेमी झूठे संत अपने लाभ के लिए आरएसएस के दरबारी संत बने बैठे हैं। आरएसएस कोई धार्मिक संगठन नहीं है, किंतु सामाजिक संगठन है। इसलिए पूज्य संतों का स्थान आरएसएस से बड़ कर है। आरएसएस को पूज्य संतों के चरणों में रहना चाहिए, न कि पूज्य संत आरएसएस नेताओं के समक्ष दरबारी बने बैठे। व्यक्तिगत लाभ के लिए कलयुगी कालनेमी संत ही आरएसएस नेताओं के सामने दरबारी बने बैठे रहते हैं। ये छद्मवेशी संत आरएसएस के एजेंडे पर हां में हां मिलाकर लाभ लेने के प्रयास में रहते हैं।

सनातन धर्म को बचाना है तो ऐसे दरबारी नकली संतों का बहिष्कार होना चाहिए। जब तक इनका बहिष्कार नहीं होगा, ये नकली संत हिंदू धर्म को बेचते रहेंगे और व्यक्तिगत लाभों के लिए आरएसएस के नेताओं को छवि दिखाकर लाभ लेते रहेंगे। साथ ही आरएसएस नेताओं को भी चाहिए कि वे ऐसे संतों की पहचान करें जो उनके पास व्यक्तिगत लाभ के लिए आते हैं और धर्म को ही बेच खाते हैं।

Jitender Khurana

जितेंद्र खुराना HinduManifesto.com के संस्थापक हैं। Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. www.HinduManifesto.com does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article.

Leave a Reply

Share

Compare