ऑटो चालकों ने खोला मोर्चा केजरीवाल-ओला-उबर के खिलाफ और परिवहन में की सुधारों की वकालत

auto-against-ola-uber_fotor प्रेस विज्ञप्ति 13.10.2016

कर्नल देविंदर सहरावत,विधायक, बिजवासन
राकेश अग्रवाल,सचिव, न्यायभूमि
अनुज अग्रवाल, संपादक, डायलॉग इंडिया

ओला-उबर पर गैर कानूनी रूप से गाडियाँ चलाने का और केजरीवाल की ओला उबर से सांठगाँठ का आरोप

जंतर मंतर पर ऑटो व टैक्सी चालकों की एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए बिजवासन से विधायक कर्नल देविंदर सहरावत, न्यायभूमि के सचिव राकेश अग्रवाल और डायलॉग इंडिया के संपादक अनुज अग्रवाल ने केजरीवाल सरकार पर बरसने में कोई कसर नहीं छोड़ी। केजरीवाल पर ओला उबर के साथ सांठगाँठ का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि “एक तरफ तो केजरीवाल कहते हैं कि ओला उबर पर बैन लगा हुआ है और दूसरी तरफ इन्हीं कंपनियों को दिल्ली सरकार के एक कार्यक्रम “दिल्ली समर फेस्टिवल” में आधिकारिक पार्टनर बनाते हैं। रैली में केजरीवाल और ‘आप’ नेता आशुतोष के मई महीने के ट्वीट दिखाए गए जिनमें बैन की बात कही गयी है”।

सहरावत-अग्रवाल की जोड़ी ने ओला और उबर को विभिन्न कानूनों का उल्लंघन करके टैक्सी चलाने देने का केजरीवाल पर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि “डीजल की टैक्सी चलाकर ये कंपनियां सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन कर रही हैं, बिना रेडियो टैक्सी लाइसेंस के ये सवारी की सुरक्षा के लिए खतरा हैं और सरकारी किराया ना लेकर मनमाना किराया ले रही हैं। कानून के मखौल का आलम ये है कि दिल्ली हाई कोर्ट के 11 अगस्त के उस आदेश की भी धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं जिसमें इन्हें सरकारी किराये से एक भी पैसा ज्यादा ना लेने के लिए कहा गया था”। सहरावत ने आरोप लगाया कि “इसके बावजूद ओला और उबर मनमाने तरीके से चल रही हैं क्योंकि केजरीवाल ने उनके साथ एक गुप्त सौदा कर लिया है जिससे पंजाब के रास्ते प्रधान मंत्री बनने का उनका सपना पूरा करने के लिए भरपूर पैसा आ रहा है। इससे ऑटो वालों की आमदनी आधी रह गयी है। केजरीवाल की तिजोरी छलक रही है और ऑटो वाले अपने रोजगार को ओला उबर से बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं”।

आन्दोलन के एक नेता संजय चावला ने कहा कि “ऑटो व टैक्सी चालक ओला व उबर द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं के खिलाफ नहीं हैं बल्कि वे तो उनके द्वारा लागत से कम मूल्य पर सेवा देने के खिलाफ है जिससे सारा बाज़ार उनके हाथ में आता जा रहा है और ऑटो और काली पीली टैक्सी से गलत तरीके से प्रतियोगिता ख़तम की जा रही है। ऐसा वे खरबों रुपयों की venture funding के बल पर कर पा रहे हैं”। चावला ने जोर देकर कहा कि “ऐसा करना दीर्घकाल में एक स्वस्थ व प्रतियोगी बाज़ार के हित में नहीं होगा। कम्पटीशन समाप्त होने के बाद ओला उबर का असली चेहरा सामने आएगा और तब वे ना केवल अपने पुराने नुक्सान को वसूल करेंगे बल्कि अपने एकाधिकार से चालक वर्ग व सवारियों दोनों का भरपूर शोषण करेंगे”।

हाल ही में चीन में उबर द्वारा अपना बिज़नेस वहां की एक विशाल स्थानीय कंपनी डीडी को बेचे जाने का उदहारण देते हुए सहरावत ने कहा कि “भारत में इसका उल्टा होगा क्योंकि यहाँ उबर के 25,000 करोड़ के खजाना के सामने ओला के 1,500 करोड़ कहीं नहीं ठहरते। बस समय की बात है कि ये होगा कितना जल्दी. देखा जाए तो देश की राज्य सरकारें एक अमेरिकी कंपनी उबर के हाथों में खेल रही हैं और सम्पूर्ण भारतीय परिवहन बाज़ार को एक थाली में सजाकर उसे पेश कर रही हैं”। सहरावत ने अनुमान लगाया कि “2018 तक दस लाख की आबादी वाले सभी शहर उबर की गिरफ्त में होंगे जिससे मोदी के उद्यम विकास कार्यक्रम को बड़ा झटका लगेगा और सभी चालक उबर से दैनिक किराये पर “लीजिंग” वाली टैक्सी लेकर चलाने को मजबूर होंगे”।

सामाजिक कार्यकर्ता, चिन्तक व विचारक श्री गोविन्दचार्य ने अर्थव्यस्था के एक महत्वपूर्ण अंग को विदेशी हाथों में जाने के खतरे को देखते हुए आन्दोलन को अपना समर्थन दिया है। वृन्दावन में एक पूर्वनिश्चित कार्यक्रम की वजह से वे रैली में भाग नहीं ले सके।

अल्टीमेटम – सर्जिकल स्ट्राइक

आन्दोलन के अगले क़दमों की ओर इशारा करते हुए अग्रवाल ने तुरंत प्रभाव से ओला व उबर पर लगी बैन को लागू करने व दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा बनायीं गयी पालिसी समिति के सामने किसी स्टेडियम या ऑडिटोरियम में बुलाकर चालको को सीधे अपनी बात रखने का मौका देने की मांगें रखी। उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक सरकार इन जायज मांगों को मान नहीं लेती, हर ऑटो और टैक्सी पर पोस्टर लगेगा और जनता को ओला उबर के गैर कानूनी तरीके बताकर और उनसे होने वाले दीर्घकालीन नुक्सान बताकर जनमत को अपने पक्ष में किया जाएगा

एक अल्टीमेटम जारी करते हुए अग्रवाल ने कहा कि यदि 21 नवंबर तक मांगें नहीं मानी गयी तो 50,000 ऑटो टैक्सी चालक इकठा होंगे और केजरीवाल-ओला-उबर की तिगडी के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करेंगे। सर्जिकल स्ट्राइक के प्रारूप और विवरण को नहीं बताया गया।

अपने ही ऑटो-घोषणा-पत्र को लागू करने में विफल केजरीवाल

अग्रवाल ने केजरीवाल पर आरोप लगाया कि ऑटो चालकों ने उनकी पार्टी को जिताने और सरकार बनने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई पर केजरीवाल ने ऑटो सेवा को सुधारने या चालकों के हित के लिए कुछ नहीं किया। अग्रवाल ने ‘आप’ के घोषणा पत्र से 8 वायदों को पढ़ा और दावा किया कि “केजरीवाल ने एक भी वादा पूरा नहीं किया। उन्होंने विशेष तौर पर ऑटो-फाइनेंस-माफिया, मंजूरशुदा ऑटो स्टैंडो की कमी पर बात की और कहा कि किराया ढांचा बदलते परिवेश व ज़रूरतों के मुताबिक़ ठीक नहीं किया गया.

आरोप-केजरीवाल भ्रष्टाचार में डूबी GPS स्कीम को बिना कारण ढो रहे हैं

“मार्च 2013 में अग्रवाल द्वारा बुलाई गयी एक रैली में केजरीवाल ने वादा किया था कि सरकार बनने पर वे GPS स्कीम की जांच कराएँगे जिसमें भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है। लेकिन आज भी वही स्कीम ज्यों की त्यों चल रही है। GPS से ना आज तक कोई चोरी गयी ऑटो मिली है और ना ही किसी सवारी का छूटा हुआ सामान उसे मिला है। ऐसे में फायदा क्या है GPS का? इन को क्षेत्र विशेष में ट्रैक तक नहीं किया जा सकता। पर फिर भी DIMTS नामक प्राइवेट कंपनी को केजरीवाल ने हर महीने ऑटो टैक्सी चालकों से कण्ट्रोल रूम के नाम पर 1,50,00,000 रूपए वसूलने की छूट दे रखी है। कण्ट्रोल रूम मात्र 1-2 मेजों पर सजे 2-3 कंप्यूटरों का एक कमरा मात्र है जिसमें क्या होता है केवल भगवान ही जानता है। सरकार द्वारा बनायीं ‘पूछो एप’ का कहीं अता पता नहीं है”।

अग्रवाल ने मांग रखी कि “चूंकि GPS लग ही चुके हैं तो उनका कण्ट्रोल यूनियनों और एसोसिएशनों को दे दिया जाए जो ना केवल वास्तविक सेवा देंगी बल्कि कोई शुल्क भी नहीं मांगेगी”

सुधार

आन्दोलन की महिला नेत्रियाँ योगिता भयाना और रंजू मिन्हास ने कहा कि “दीर्घकाल में ओला उबर के खतरे को दूर रखना है तो परिवहन क्षेत्र में सुधार करने ही पड़ेंगे। इन सुधारों को ना तो अकेले राज्य सरकार और ना ही अकेले चालक वर्ग ला सकता है। ईमानदार और प्रोफेशनल परिवहन सेवा के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना सरकार का काम है और उस माहौल को बनाये रखना चालक वर्ग का, दोष किसी एक को देना ठीक नहीं”।

सबसे कॉमन रीफुजल और ओवरचार्जिंग की शिकायतों का ज़िक्र करते हुए राकेश अग्रवाल ने कहाँ कि “पिछले 15 सालों में यात्रा में लगने वाले समय के हिसाब से दिल्ली-NCR बहुत बड़ी हो गयी है जिसके मद्देनज़र एक नयी सोच की ज़रुरत है। इस बात का तरीका निकलना पड़ेगा कि स्थानीय यात्राओं के लिए बना ऑटोरिक्शा कहाँ और किस हिसाब से चलेगा ताकि उससे बाहर या दूर की सवारी को वो कानूनी रूप से मना कर सके या ज्यादा पैसा मांग सके। आज एक ऑटो या टैक्सी चालक की लागत में सबसे बड़ा घटक समय की कीमत होती है पर उसका कोई मूल्य उसे ना के बराबर मिलता है। इसलिए किराए के ढाँचे को भी तर्कसंगत बनाना होगा”।

“जिन नियमों के तहत चालक को चलना पड़ता है, वे भी काफी जटिल और उलझाने वाले होते हैं जिससे गुज़ारा करना मुश्किल होता है। अधिकारियों तक को कानून का पता नहीं होता”। उदहारण के तौर पर राकेश अग्रवाल ने RTI से प्राप्त एक जवाब भी हवा में लहराया और कहा कि “दिल्ली परिवहन विभाग ने माना कि वर्दी के रंग को लेकर नियमों और परमिट की शर्तों में ही विरोधाभास है। नियम 7 कहता है कि वर्दी खाकी होनी चाहिए जबकि परमिट की शर्तें कहती हैं कि वे स्लेटी होंगी। जूते, बेल्ट, जेबें, कंधे पर पट्टी, कपडे का प्रकार, सिलाई का विवरण आदि बातों को लेकर कोई नियम या शर्तें ही नहीं हैं लेकिन जूते ना पहनने या कंधे पर पट्टी ना होने से बार बार चालान होते रहते हैं”।

एक मजबूत यूनियन

“संघर्ष, संगठन और सुधार” का नारा देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता उमेश शर्मा ने एक ऐसी मजबूत चालक यूनियन बनने के मंतव्य की घोषणा की जिसमें हर प्रकार के वाहन के सभी चालक सदस्य होंगे। अधिक विवरण नहीं दिया गया।


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