इन वैदिक मंत्रों से आपके परिवार और संगठन में एकता आएगी
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सम्पादन-जितेंद्र खुराना
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सनातन वैदिक धर्म के 28वें वेद व्यास भगवान महाऋषि श्रीकृष्ण द्वैपायन जी ने संकलित और व्यास अर्थात विस्तार कर वेदों का वर्तमान स्वरूप हमें दिया। भगवान महाऋषि वेद व्यास अर्थात महाऋषि श्रीकृष्ण द्वैपायन भगवान विष्णु के 21वें अवतार हैं।
हमारे परिवार और अनेकों हिन्दू संगठनों में भी कभी कभी विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। और हमें उसका हल नहीं मिलता जबकि उसका वेदों ने हमें सहसत्रों वर्ष पहले ही दे दिया था। वेदो मंत्रों का ज्ञान सभी समस्याओं का हल है क्योंकि वेद ईश्वर की साक्षात वाणी है एवं मानव मात्र और समाज के कल्याण के लिए ही अवतरित हुई हैं। वेद ही धर्म है।
वैदिक मंत्रों को मन मस्तिष्क में धारण करिये और वैदिक जीवन जियेँ। पाठकों की सरलता के लिए वैदिक मंत्रों के अर्थ यहाँ दिये गए हैं।
अथर्ववेद 3.30.1
हे मनुष्यों, आप लोग प्रेमपूर्वक हृदय के भाव, मन शुभ विचार और आपस की निर्वैरता अपने मन में स्थिर कीजिये। आपमें से प्रत्येक एक दूसरे मनुष्य के साथ ऐसा प्रेम पूर्वक व्यवहार करे कि जिस प्रकार नवजात बछड़े से उसकी गौ माता प्रेम करती है। अर्थात हम समाज के किसी भाई-बहिन के साथ द्वेष-घृणा, उंच-नीच व भेदभाव का व्यवहार न करें।
अथर्ववेद 7.52.2
हम सभी से, मन से, एकमत व वैचारिक समता स्थापित करें। विद्वानों से एकमत रखें। हम दिव्य मन से वियुक्त न हों। बहुतों की मृत्यु पर भी शोकाकुल न हों और कभी परमात्मा का क्रोध रूपी बाण हमारे ऊपर न गिरे। अर्थात मनुष्य सदैव राष्ट्रीय एकता के लिए कार्य करे और यदि सांस्कृतिक विनाश का भय हो तो बलिदान करने पर भी शोकाकुल न हों तथा राष्ट्र को सदैव देवी व मानवीय आपत्तियों से बचाने अथवा प्रभावियों की सेवा करने में भी पीछे न रहें।
Continued…