मौलिक भारत ट्रस्ट ने वित्त मंत्री अरुण जेटली और वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार को वस्तु एवं सेवा कर पर सुझावों सहित एक प्रतिवेदन भेजा
प्रेस विज्ञप्ति
आज दिनांक 22 सितम्बर 2016 को मौलिक भारत ट्रस्ट के ट्रस्टी अनुज अग्रवाल, पवन सिन्हा, अनंत त्रिवेदी, उषा ठाकुर, सुसज्जित कुमार, गजेन्द्र सोलंकी , ईश्वर दयाल कंसल ,राजेश गोयल, अमरनाथ ओझा, उमेश गौड़, नीरज सक्सेना, विकास गुप्ता ने वित्त मंत्री अरुण जेटली और वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार को एक प्रतिवेदन भेजा, और वस्तु एवं सेवा कर में कुछ राज्यो द्वारा 1.5 कऱोड तक की आय वाले करदाताओ से कर संग्रहण अधिकार राज़्यों को ही दिए जाने का विरोध किया। संस्था के महासचिव अनुज अग्रवाल ने स्पष्ट करते हुए बताया कि –
कुछ राज्यों की मांग (पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि) 1.5 करोड़ से कम आय वाले करदाता सीजीएसटी, एसजीएसटी और आईजीएसटी के संग्रहण के लिए लेखा परीक्षा और प्रवर्तन सहित स्थानीय प्रशासन के अंतर्गत आने चाहिए।
अपने पक्ष में कुछ राज्यों के द्वारा दिए गए तर्क: (i) दोहरे नियंत्रण से दो प्रशासनों के साथ कार्य करने की द्रष्टि से छोटे कर दाताओं के सामने अधिक अनुपालन लागत के कारण अधिक कठिनाई आएंगी, और इससे उनकी प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी और वह “सुगम व्यापार” के सिद्धांत के विरुद्ध हैं. (ii) छोटे डीलर राज्य प्रशासन के साथ ही व्यापार करने के आदी होते हैं और वे जीएसटी पद्धति में परेशानी मुक्त परिवर्तन सुनिश्चित करेंगे।(iii) राज्यों की प्रशासनिक उपस्थिति अधिक होती है और इस प्रकार वे छोटे कर दाताओं के साथ बेहतर तरीके से कार्य कर सकते हैं।
मौलिक भारत का मानना है कि –
इन राज्य सरकारों के तर्क में त्रुटियाँ हें–
(i)एक छोटा करदाता कौन है? राज्यों की वर्तमान व्याख्या छोटे कर दाताओं को लेकर स्पष्ट नहीं है और वह एक ऐसा परिद्रश्य प्रस्तुत करती है जहां पर 90% भारतीय व्यापार संस्थाएं छोटे कर दाताओं के रूप में मानी जाती हैं और यह स्व-सेवा द्रष्टिकोण ही अधिक है।
(ii) केन्द्रीय कर प्रशासन सामान और सेवाओं दोनोंके लिए बड़े और छोटे करदाताओं के साथ कार्य कर रहा है: सेवा कर में छूट की सीमा केवल दस लाख रूपए है, और चुंगी में तो कई छोटे आकार के उद्योग सेंवेंट क्रेडिट सुविधा का लाभ उठाने के लिए छूट का लाभ भी नहीं लेते हैं। केंद्र के अधिकतर कर निर्धारण दस लाख से लेकर 1.5 करोड़ की सीमा वाले सेवा कर निर्धारण हैं जो अभी तक केंद्र सरकार के साथ ही कार्य कर रहे थे। और केंद्र सरकार के पास पहले और दूसरे चरण के डीलर का न्यायक्षेत्र होता है, उनमें से अधिकतर 1.5 करोड़ की सीमा में ही आते हैं। इस प्रकार केंद्र पिछले कई दशकों से लाखो छोटे व्यापारियों के साथ कार्य करता हुआ आ रहा है, और आज तक करदाताओं के किसी भी वर्ग ने केंद्र की कराधान प्रणाली से राहत के लिए कोई आवाज़ नहीं उठाई है, जो केंद्र सरकार के पेशेवर कर प्रशासन का प्रमाण हैं।
(iii) केंद्र सरकार के अप्रत्यक्ष कर प्रशासन में सभी कैडर में 80,000 कर्मचारियों की कैडर शक्ति के साथ इस देश की हर इंच भूमि सम्मिलित है।और केंद्र सरकार दो दशकों से सेवा कर क़ानून का प्रबंधन कर रही है और अभी तक केंद्र सरकार के पास बाधा विहीन कर संकलन हुआ है जो 5,000 करोड़ से बढ़कर आज 2,00,000 करोड़ हो गया है।
(iv) दोहरे नियंत्रण और परेशानी के मुद्दे भी बेकार हैं क्योंकि जीएसटी केवल लेखा परीक्षा और अनुपालन के लिए कर चोरी बचाने के लिए सूचना तकनीक आधारित कर आंकलन है। और यहाँ तक कि आज भी करदाता केंद्रीय चुंगी, सेवा कर, वैट, चुंगी, मनोरंजन कर और अन्य कई राज्य सरकार की संस्थाओं को अलग अलग कर देता है। वर्तमान में छोटे कर दाताओं को 5 या 6 अप्रत्यक्ष कर संस्थाओं के साथ कार्य करना होता है, मगर जीएसटी दोहरे नियंत्रण प्रणाली के अंतर्गत उन्हें केवल दो केंद्रीय और राज्य जीएसटी विभागों के साथ ही काम करना होगा।
(v) छोटे करदाताओं के ली कई दस्तावेजी और अन्य आवश्यकताएं हैं जिन्हें कम किया जा सकता है और उन्हें केवल तिमाही लाभ और योग योजनाएं ही केवल फाइल करनी होंगी।
यह प्रस्ताव एक प्रभावी जीएसटी के कार्य को बर्बाद कर सकता है ऐसा मौलिक भारत संस्था मानती है , संस्था का मानना है कि
जीएसटी की तरफ उठाया गया हर कदम कर संरचना को सरल करने, कर आधार का विस्तार करने, कर चोरी को रोकने और ईमानदार कर दाताओं को सम्मानित करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए है। यह सभी हितधारकों अर्थात कर दाताओं, केंद्र और राज्य सरकार के लिए लाभप्रद स्थिति होनी चाहिए। करदाताओं को इस आधार पर बांटने का प्रस्ताव कि 1.5 करोड़ से कम आय वाले करदाताओं की निगरानी केवल राज्य सरकार के द्वारा होगी, जीएसटी के लिए किसी आघात से कम नहीं है। इससे जम्मू और कश्मीर से लेकर केरला तक विभिन्न राज्यों के द्वारा जारी विभिन्न व्याख्याओं के कारण कर दाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा होगी और कर चोरी में वृद्धि होगी। इससे कर पर नियंत्रण में कमी आएगी और अंतत: देश के लिए राजस्व क्षति होगी।
मौलिक भारत का अनुमान है कि इस मांग को मान लेने से कुछ और भी समस्याएँ आ सकती हैं, जैसे:
1. इससे ऐसी सहभागिताओं की बाढ़ आ जाएगी जिसमें करदाताओं की चिंता केवल बताई गयी आय से कम सीमा में रहने की बताई गयी सीमा से कम घोषित करने की होगी, और इससे बेईमान करदाताओं को प्रोत्साहन मिलेगा।
2. यूरोपियन युनियन में, जब जीएसटी को 2006-11 में लागू किया गया तो कई करों से बचा गया जिन्हें “करोसेल फ्रौड (या गुम व्यापारी छल) के रूप में जाना गया, और जिसमें 200 मिलियन यूरो के कर की चोरी हुई।यह धोखा इसलिए हो सका क्योंकि युनियन के सदस्य देश अन्य राज्यों के दिए गए आंकड़ों को सत्यापित करने में असफल रहे। इसी प्रकार अगर 80% कर दाताओं को केंद्र सरकार के नियंत्रण से बाहर रखा जाएगा, तो ऐसे कई धोखे होंगे क्योंकि राज्य दूसरे राज्य में कर चोरी के लिए किए जा रहे ऐसे लेनदेनों पर नज़र रखने में अक्षम होंगे।
3. सीमारेखा के सिरे पर कर दाताओं का भाग्य हमेशा ही आय के विभिन्न मदों के बीच झूलता रहेगा और इससे राज्य और दोहरे नियंत्रण के बीच वे पिस सकते हैं।
4. यह समझना भी हमेशा आवश्यक होता है कि बड़े करदाताओं का कर प्रशासन छोटे कर दाताओं के प्रशासन से उसी सप्लाई चेन का छोटा हिस्सा होने और बड़े व्यापार में एकतरफा रुझान के कारण विचलित हुए बिना नहीं रह सकता। और एक श्रेणी पर प्रशासनिक निर्णयों के प्रभाव के परम्परागत ही मूल्य होंगे।
5. लगभग 90% व्यापारिक संस्थाएं परिद्रश्य से और केंद्र सरकार के संपर्क से हमेशा के लिए बाहर हो जाएगी और सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों जैसे मेक इन इंडिया, व्यापार करने की सरलता के लिए स्टार्टअप इंडिया और स्टैंडअप इंडिया पूरी तरह से राज्य सरकारों की दया पर निर्भर हो जाएंगे।
ऐसे में एक प्रभावी, ईमानदार और पारदर्शी कर संग्रह व्यवस्था का निर्माण जनहित में अत्यंत जरुरी है। ऐसे में हमारा सरकार से आग्रह है कि वो उपरोक्त मांग कर रहे राज्यों के दबाब में आकर कोई संशोधन न करे।
भवदीय
अनुज अग्रवाल
महासचिव
मौलिक भारत ट्रस्ट
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