पूर्व आप नेता कर्नल देवेन्द्र सेहरावत, सामाजिक कार्यकर्ता अनुज अग्रवाल और राकेश अग्रवाल ने लगाया दिल्ली सरकार और ओला-उबर पर मिलीभगत और भ्रष्टाचार का आरोप
प्रैस विज्ञप्ति
21/09/2016 प्रेस क्लब में आयोजित प्रेसवार्ता में ओला उबर के भ्रष्टाचार के और इसमें दिल्ली सरकार की मिली भगत के खिलाफ एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। जिसे बिजवासन से विधायक कर्नल देवेन्द्र सेहरावत, न्याय भूमि के सचिव राकेश अग्रवाल और डायलॉग इंडिया के संपादक अनुज अग्रवाल ने संबोधित किया।
लगभग तीस हज़ार करोड़ की Venture Funding के बल पर कम्पटीशन को ख़तम करने वाली ओला-उबर के खिलाफ एक विशाल आन्दोलन खड़ा किया जा रहा है. इस आन्दोलन में दिल्ली की सभी ऑटो, टैक्सी, बसों आदि की अधिकतर यूनियन व संगठन आदि भाग ले रहे हैं. बाद में इसे राष्ट्रव्यापी भी बनाया जाएगा. हम ओला उबर की सेवाओं के नहीं बल्कि उनके कम्पटीशन-विरोधी तरीकों के खिलाफ हैं. उनके कानून-विरोधी तरीकों का भी विरोध होना चाहिए. इसमें हमारी सरकारों से लेकर न्यायपालिका तक पूरी व्यवस्था पिछले दो सालों से नाकाम रही हैं. माजरा कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार का है. और इस भ्रष्टाचार से शहर के अन्य परिवहन ऑपरेटर अपनी रोज़ी रोटी खोते जा रहे हैं. एक दिन केवल ओला या उबर ही बचेंगे जो जमकर सवारियों का शोषण करेंगे. इसलिए इस आन्दोलन को करना पड़ रहा है.|
क्यों हैं हम ओला और उबर टैक्सी/ऑटो के खिलाफ ? –
1) क्योंकि दो बर्ष से अधिक से काम करने के बाद भी इनके पास लाइसेंस ही नहीं है।
2) क्योंकि ये डीजल से चलती हें सी एन जी द्वारा नहीं, और यह उच्चतम न्यायलय के दिशा निर्देशों का उल्लंघन है।
3) यह कंपनियां पीक आवर्स के नाम पर ग्राहकों से अतिरिक्त किराया लेती हें, यह मोटर अधिनियम की धाराओं के अनुसार अवैध है।
4)हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इन कंपनियों द्वारा इस प्रकार किराया लेने को अवैध माना और तुरंत ऐसा करने से रोकने को कहा किंतू ये कंपनियां इस आदेश को नहीं मान रही और दिल्ली सरकार इनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही।
5) हमने इन कम्पनियों द्वारा ग्राहकों से अवैध रूप से वसूले गए रु 9239 करोड़ की वापसी के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में याचिका भी डाली है।
6) इन कंपनियो के द्वारा यह दावा कि वे ग्राहकों से 6रु प्रति किमी वसूलते हें , सफ़ेद झूठ है। हमने इनके बिलो की जाँच की तो यह वसूली औसतन रु 15 प्रति किमी है।
7) इन कंपनियों को टैक्सी/ऑटो या इनके बीमे के लिए कुछ भी निवेश नहीं करना होता है, बल्कि टैक्सी/ ऑटो ड्राईवर ही इनके मालिक होते हें। ऐसे में तीस हज़ार करोड़ से अधिक के विदेशी निवेश ( उबर – 8200 करोड़ एवं ओला – 25000 करोड़) का यह कंपनियां क्या कर रही हें?
8) ये कंपनियां फिलहाल घाटे में सेवाएं दे रही हें। ये घाटा उठाकर निजी टैक्सी/ऑटो चालकों के मुकाबले कम कीमत पर बेहतर सेवाएं दे रही हें। इसके अतिरिक्त ये निजी टैक्सी/ऑटो चालकों को अपने साथ जोड़ने के लिए उनको लालच दे रही हें। ये फिलहाल अपने से जुड़ने वाले चालकों को उनके द्वारा किये गए बिजनेस पर कई गुना तक इंसेंटिव दे रही हें, जिससे स्वतन्त्र रूप से काम करने वाले निजी चालकों और छोटी कम्पनियों का काम बंद होता जा रहा है।
9) ये कंपनियां बाजार पर एकाधिकार कर फिर उसी प्रकार अपने किराये कई गुना बढाती जाएँगी जेसा इन्होंने चीन, अमेरिका और यूरोप में किया, जिससे अंततः ग्राहकों को कई गुना घाटा होगा। इसके साथ ही चालकों का इंसेंटिव भी कम करती जाती हें और वो ठगा महसूस करते हें। हमारा अनुमान है कि सन् 2017 के मध्य तक ऐसा हो जायेगा।
10) ये कंपनियां सरकारी अधिकारियों, नेताओ और न्यायाधीशो तक को कमीशन, रिश्वत दे खरीदने का खेल खेलती हें, जैसा कि दिल्ली में हो रहा है।
ऐसे में हमारी मांग है –
1) सरकार,इन कम्पनियों के गैरकानूनी कामों पर तुरंत रोक लगाये और पिछली अवैध वसूली वापस ली जाये।
2) इस क्षेत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा विकसित करने हेतू पहले पारदर्शी और स्पष्ट नियम बनाये जाएं उसके बाद इस तरह की कम्पनियों को अनुमति दी जाए।
3) किराये की स्थिर और निष्पक्ष दर बनायीं जाएं। किसी भी प्रकार के लालच, शुल्क छूट और इंसेंटिव को बंद किया जाये और इनकी परिभाषा और दायरा स्पष्ट किया जाये और इस प्रकार के नियम बनाए जाएं कि निजी टैक्सी/ऑटो चालक व छोटी कंपनियां भी प्रतिस्पर्धा में बनी रहें।
4) निजी, छोटी, बड़ी सभी कंपनियो के चालकों के प्रशिक्षण हेतू सरकार प्रशिक्षण केंद्र खोले और चालकों से सभी नियम और कानून मानने का शपथ पत्र भरवाया जाए।
5) सभी प्रकार की टैक्सी/ऑटो की गतिविधियों पर नज़र रखने और शिकायतों के निवारण हेतू प्रभावी तंत्र विकसित किया जाये।
अंत में हम स्पष्ट करना चाहते हें कि हम किसी भी देसी- विदेशी कंपनियो के खिलाफ नहीं है बल्कि खुली बाजारवादी अर्थव्यवस्था में स्वस्थ और जनहितकारी व्यवस्था लागू कराना चाहते हें। हमारा स्पष्ट मानना है कि बिना कारपोरेट गवर्नेंस के जनता के हितो का संरक्षण नहीं हो सकता।
1) कर्नल देवेंद्र सेहरावत, विधायक, बिजवासन, दिल्ली
2) राकेश अग्रवाल, सचिव, न्याय भूमि
3) अनुज अग्रवाल, संपादक, डायलॉग इंडिया