ईश्वरीय वाणी वेदों का आदेश-उत्साह ही जीवन है, निराशा ही मृत्यु है

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-ॐ शक्ति-

आ त एतु मनः पुनः क्र्त्वे दक्षाय जीवसे।

ज्योक् च सूर्य दृशे॥

ऋग्वेद 10.57.4

तेरे अंदर मनोबल पुनः संचारित हो जाये जिससे तू कर्म कर सके, बली बन जाए, जीवित-जागृत होकर रहे और चिरंजीवी होकर चिरकाल तक सूर्योदय के रमणीय दृश्य देखता रहे।

-ॐ शक्ति-

मयि त्यदिन्द्रियं बृहन्मयि दक्षो मयि क्रतुः।

धर्मस्त्रिशुग् विराजति विराजा ज्योतिषा सह ब्रह्मणा तेजसा सह।।

यजुर्वेद 38.27

मेरे अंदर इन्द्र का बड़ा भारी बल है। मेरे अंदर उत्साह है। मेरे अंदर संकल्प-शक्ति है। शरीर-मन-आत्मा तीनों का तेज मेरे अंदर दमक रहा है। मैं विराट ज्योति से भासमान हूँ और ब्रह्मतेज से भी देदीप्यमान हूँ अर्थात उत्साही व आत्मविश्वासी व्यक्ति में असीमित नैतिक बल व साहस होता है।

-ॐ शक्ति-

मन्युरिन्द्रो मन्युरेवास देवो मन्युर्होता वरुणो जातवेदाः।

मन्युर्विश ईडते मानुषीर्याः पाहि नो मन्यो तपसा सजोषाः॥

अथर्ववेद 4.32.2

उत्साह ही इन्द्र है। उत्साह ही देव है। उत्साह ही होता (यज्ञकर्ता), वरुण (न्याय और जल का देवता) और अग्नि है। सारी मानवीय प्रजाएं उत्साह की ही स्तुति करती हैं। हे उत्साह, तुम तप से युक्त होकर हमारी रक्षा करो अर्थात वही व्यक्ति स्तुत्य होता है जो लगन, निष्ठा और उत्साहपूर्वक अपने लक्ष्य के प्रति क्रियाशील रहता है। उत्साह सफलता की कुंजी है।

-ॐ शक्ति-

दिवो न यस्य रेतसो दुघनाः पन्थासो यन्ती शवसापरीताः॥

तरद्द्वेषाः सासहीः पौंस्येभिर्मरुत्वान् नो भवत्विंद्र ऊती।।

ऋगवेद 1.100.3

जिस इन्द्र के मार्ग सूर्य के तुल्य शक्ति के वर्षक हैं और अपनी शक्ति के कारण अजेय हैं, वह शत्रु नाशक अपने साहसिक कार्यों से शत्रु विजयी हो, इन्द्र-मरुत् देवों के साथ हमारी रक्षा के लिए हो अर्थात मनुष्य अपनी साहसिक शक्ति से शत्रु दमन करे और कभी निराश न हो, क्योंकि उत्साह ही जीवन है, निराशा ही मृत्यु है।

-ॐ शक्ति-

त्वं हि मन्यो अभि भूत्योजाः स्वयं भूर्भामो अभिमातिषाहः।

विश्वचर्षणीः सहुरिः सहावान् अस्मा स्वोजः पृतनासु धेहि॥

ऋगवेद 10.83.4

हे उत्साह, तू ही उत्कृष्ट शक्ति वाला, अपने सामर्थ्य से रहनेवाला तेजस्वी, शत्रुओं का विजेता, सभी मनुष्यों में रहने वाला शक्तिशाली विजेता हो। संघर्षों में हमारे अंदर शक्ति व बल भर दो।

चाणक्य का कथन है कि “उत्साही के शत्रु भी मित्र बन जाते हैंउत्साहवतां शत्रुवोअपि वशी भवन्ती (चाणक्य सूत्र 282)। साहस में ही लक्ष्मी निवास करती है अर्थात साहसी को लक्ष्मी मिलती हैसाहसे लक्षमी वसती (चाणक्य सूत्र 150)साहसवतां प्रियं कर्तव्यं (चाणक्य सूत्र 538), साहसी लोगों को सहयोग देना चाहिए”। क्योंकि वे अपना जीवन संकट में डालते हैं। महाभारत का कथन है कि “मनुष्य अपने आप को बिना संकट मे डाले अर्थात बिना साहस किए कोई महान कार्य नहीं कर सकता है और यदि अपने को संकट में डालकर यह जीवित रहता है तो सफलता के फलस्वरूप सुख ही सुख भोगता है”

शास्त्रों का कथन है कि जहां उद्दम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पुरुषार्थ आदि गुण रहते हैं, वहाँ परमात्मा भी सहायता करता है।

उद्दमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।

षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत् ॥

चाणक्य का कथन है कि निरुत्साहद् दैव् पतति ((चाणक्य सूत्र 185) अर्थात “उत्साहहीनता से मनुष्य का भाग्य नष्ट हो जाता है”। अतः उत्साह ही जीवन है, निराशा ही मृत्यु है

(उपरोक्त सभी मंत्र डा० कृष्णवल्लभ पालीवाल द्वारा लिखित पुस्तक वेदों द्वारा सफल जीवन से लिए गए हैं। श्री पालीवाल जी ने वेदों के मंत्र महाऋषि दयानन्द सरस्वती , पंडित श्री पाद दामोदर सातवलेकर, पंडित रामनाथ वेदालंकार एवं डा० कपिल द्विवेदी आदि वेद विद्वानों के वेद भाष्यों से लिए हैं। शीघ्र ही यह पुस्तक यहाँ ऑनलाइन खरीदने के लिए भी उपलब्थ होगी।

लेखन, लेख का विचार एवं संकलन जितेंद्र खुराना द्वारा किया गया है। )

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सम्पादन-जितेंद्र खुराना

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Jitender Khurana

जितेंद्र खुराना HinduManifesto.com के संस्थापक हैं। Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. www.HinduManifesto.com does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article.

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